तो भरी संसद में, लोकसभा के अध्यक्ष की उपस्थिति में सत्ता पक्ष के एक सांसद ने दूसरे को भद्दी (सामान्य सामाजिक सभ्यता के नाते भी और संविधान के नाते भी भद्दी !) गाली दी. फिर क्या हुआ ? अध्यक्ष ने इसे सामान्य मामले की तरह लिया और कहा कि वे गाली को फिर से सुनेंगे और फिर जो जरूरी होगा, वह करेंगे. सत्ता पक्ष के दूसरे सांसदों ने क्या किया ? कई खिलखिला कर बेशर्मी से हंसे; कई प्रतिशोध की जहरीली मुद्रा में उछल पड़े कि चलो, किसी ने तो इस आदमी का उस तरह अपमान किया जिस तरह हम भी करना चाहते तो थे लेकिन हिम्मत नहीं हो रही थी ! कुछ थे शायद जो असमंजस में चुप रहे लेकिन उनके चेहरे पर भाव ऐसा था मानो बात तो गलत है लेकिन अपनी पार्टी की तरफ से कही गई है, तो क्या बोलें और कैसे बोलें !
आप समझ ही गए होंगे कि प्रसंग उस दिन का है जिस दिन भारतीय जनता पार्टी के सुप्रसिद्ध विवेकहीन सांसद अनुराग ठाकुर ने, कांग्रेस के सांसद व प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी के लिए कहा कि “जिसकी जाति का पता नहीं, वह जाति गणना की मांग कर रहा है!” वे समझ रहे थे कि वे जो बोलने जा रहे हैं उसकी चोट भी लगेगी और उसकी गूंज भी उठेगी. इसलिए, गला साफ़ कर, अध्यक्ष का ध्यान खींचते उन्होंने पूरी तैयारी से, समां बांध कर यह गाली दी.
राहुल गांधी की दिक्कत यह है कि महाभारत में जैसे अर्जुन को मछली की आंख मात्र दिखाई दी थी, दूसरा कुछ नहीं, वैसे ही उन्हें जातीय गणना का सवाल दिखाई देता है, उससे आगे-पीछे कुछ नहीं. यह उपमा उनकी ही दी हुई है. भारतीय जनता पार्टी का हाल भी ऐसा ही है. उसे इस मांग को एकदम सिरे से खारिज करने के आगे या पीछे दूसरा कुछ दीखता नहीं है. (उसे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जरूर दीखते हैं लेकिन वे जानते हैं कि नीतीश कुमार की आवाज जब तक गुम है, तब तक वे उन्हें देख कर भी, अनदेखा कर ही सकते हैं !)
हम कहते हैं : राहुल गांधी-अनुराग ठाकुर में दोनों सही या दोनों गलत हो सकते हैं; या कोई एक गलत व दूसरा सही हो सकता है. लेकिन दोनों को अपनी-अपनी सही या गलत राय रखने का और उसे जाहिर करने का भी पूरा अधिकार है. यह अधिकार हम सबको जन्मसिद्ध मिला है जैसा कि बालगंगाधर तिलक ने स्वराज्य के लिए कहा था. लेकिन बालगंगाधर तिलक को तब जो अधिकार नहीं मिला था लेकिन हमें मिला है, वह यह है कि हमें अपनी राय रखने व उसे जाहिर करने का जन्मजात अधिकार तो है ही, संवैधानिक अधिकार भी है. तो हमारे तरकस में तिलक महाराज से एक वाण अधिक है. राहुल गांधी जातीय गणना की मांग करें और अनुराग ठाकुर उसका विरोध करें, इसमें आपत्ति जैसी कोई बात नहीं है. इन दो के बीच लोकसभा अध्यक्ष की कोई भूमिका है ही नहीं. लेकिन अनुराग ठाकुर अपनी राय भी न कहें, जातीय गणना के सवाल पर अपनी पार्टी का रुख भी स्पष्ट न करें लेकिन राहुल गांधी को भद्दी गाली दें, तो फिर लोकसभा के अध्यक्ष की भी सीधी भूमिका बन जाती है, अनुराग ठाकुर सीधे कठघरे में खड़े हो जाते हैं. इसलिए जो सवाल अखिलेश यादव ने पर्याप्त गंभीरता व जरूरी तेवर के साथ लोकसभा में पूछा, वही सवाल देश का हर साबित दिमाग आदमी अनुराग ठाकुर से, लोकसभा अध्यक्ष से, भारतीय जनता पार्टी से तथा ‘ईश्वरीय प्रधानमंत्री’ नरेंद्र मोदी से पूछ रहा है कि भाई, आप किसी से उसकी जाति कैसे पूछ सकते हैं ? यह हमारे तरकश का वह तीर है जो संविधान ने हमको दिया है. आप किस को जातिसूचक गाली नहीं दे सकते; आप संस्थानों में जातीय भेद-भाव नहीं कर सकते; आप जातीय टिप्पणियां कर किसी का अपमान नहीं कर सकते. मुख्तसर में यह कि आप किसी से उसकी जाति नहीं पूछ सकते.
जब अनुराग ठाकुर की बीमार, गंदी मानसिकता पकड़ी गई और उनके शातिर दिमाग ने हिसाब लगा लिया कि जातीय श्रेष्ठता का उनका तीर जहां पहुंचना था, पहुंच गया, तब उन्होंने उसी कायरता का परिचय दिया जैसी कायरता जातीय श्रेष्ठता का छूंछा भाव ओढ़ने वालों की पहचान है. जिससे कायरता भी शर्मिंदा होने लगे ऐसी कायरता से वे कहने लगे कि मैंने नाम तो नहीं लिया; मैंने कोई गाली तो नहीं दी; मैंने जाति तो नहीं पूछी. किया उन्होंने यह सब लेकिन इसे कबूल करने का साहस उनमें नहीं था. होता भी कहां से, क्योंकि साहस नैतिक धरोहर है, कुर्सी-पार्टी-मंत्रीपद की इजारेदारी नहीं.
अनुराग ठाकुर ने पूरी तैयारी से, सोच-विचार कर राहुल गांधी को गाली दी क्योंकि राहुल गांधी की बात का, तर्क का उनके पास कोई जवाब नहीं था . जब आपकी बौद्धिक औकात होती नहीं है तब आप गालियों का सहारा लेते हैं. बेचारे अनुराग ठाकुर पर दया ही की जा सकती है ! वे अपने सर के नाप से बड़ा जूता पहन कर चलते हैं और बार-बार उस जूते की मार खा कर चारो खाने चित्त गिरते हैं. जब वे किसी आमसभा में, सार्वजनिक रूप से चिल्ला-चिल्ला कर सामूहिक गालियां दे कर, गोली मारने का नारा लगवा रहे थे, तब भी उनका पतन देख कर उबकाई आती थी, सदन में भी उस रोज़ वे ऐसी ही पतनावस्था में थे. “ जिसकी जात का पता नहीं” कहने के पीछे वही गंदी मानसिकता थी जिस गंदी मानसिकता से कोई कहता है, “ तेरे बाप का ठिकाना नहीं…!” यह गंदी गाली किसी अौरत को छिनाल या रखैल या कुलटा कहने, किसी पुरुष को चरित्रहीन या स्त्रीबाज कहने, किसी बच्चे को एक बाप का नहीं या अवैध कहने जैसी गंदी बात है. यह सांस्कृतिक हीनता है जो श्रेष्टता बन कर चीखती है और अंतत: आपको ही नंगा कर जाती है.
राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी, राजीव गांधी के पिता फीरोज गांधी, राहुल गांधी की मां इंदिरा गांधी, राहुल गांधी के नाना जवाहरलाल नेहरू, उनके पिता मोतीलाल नेहरू और उनकी मां स्वरूप रानी देवी, जवाहरलाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू व जवाहरलाल नेहरू की बहनें आदि सब-की-सब हमारे स्वतंत्रता संग्राम की मान्य हस्तियां हैं. इन सबने अपनी तरह से वह इतिहास बनाया है जिसके एक छोटे कोने में भी उन सबकी उपस्थिति नहीं मिलती है जो आज सत्ता की कुर्सियों पर बैठे हैं. हम नेहरू खानदान के हर सदस्य से असहमत हो सकते हैं लेकिन उन्हें जाति या धर्म की गाली देने जैसी हीनतर मानसिकता का प्रदर्शन नहीं कर सकते. जातिवादियों को पता होना चाहिए कि संविधान ने उनसे यह हक़ छीन लिया है.
राहुल गांधी ने ठीक ही कहा कि उन्हें न अनुराग ठाकुर की माफी चाहिए, न उन्होंने इसकी मांग ही की है. उन्होंने यह भी कहा कि वे जो लड़ाई लड़ रहे हैं, जाति का सवाल उठा रहे हैं, उसके जवाब में गालियां मिलनी ही हैं. हम को भी मालूम है, राहुल गांधी को भी मालूम है कि भारतीय समाज में सदियों से जातीय-न्याय की मांग करने वालों को कम-से-कम जो मिला है, वह गाली ही है. लेकिन अब अब हमारे अौर उनके बीच एक संविधान भी है जो इसे वर्जित करता है. लोकसभा में संविधान द्वारा वर्जित काम अनुराग ठाकुर ने किया है, तो उनकी संवैधानिक सदस्यता कैसे बरकरार रह सकती है ? अध्यक्ष ने इसे तब अनसुना कर दिया. सुना कि बाद में इस टिप्पणी को काररवाई से बाहर निकाल दिया.
अध्यक्ष ने जिस गुगली से अनुराग ठाकुर को बोल्ड होने से बचाया, उसी गुगली से ‘ईश्वरीय प्रधानमंत्री’ क्लीनबोल्ड हो सकते हैं. अध्यक्ष ने जिस टिप्पणी को काररवाई से बाहर निकाल दिया, उसे ही अपनी जोरदार अनुशंसा के साथ प्रधानमंत्री ने सारे देश को भेज दिया. यह भी तो संविधान का उल्लंघन है ! संविधान बदलने की घोषित मंशा से चुनाव लड़ कर परास्त हुए ‘ईश्वरीय प्रधानमंत्री” को संसद में संविधान को धूल करने का विशेषाधिकार तो प्राप्त है नहीं. तो अब लोकसभा के बिरले अध्यक्ष बिरला क्या करेंगे ? वे विपक्ष को सदन से निलंबित करने तथा विपक्ष को आंखें दिखाने के अलावा कुछ करने की हैसियत रखते हैं क्या ? और फिर यह सवाल भी बन ही जाता है कि अनुराग ठाकुर ने जो किया व कहा उसकी योजना प्रधानमंत्री की स्वीकृति व सहमति से पहले ही बन गई थी तभी तो प्रधानमंत्री ने, जो तब लोकसभा में अनुपस्थित थे, अनुराग ठाकुर भाषण के तुरंत बाद उस पूरे भाषण को ‘रि-ट्विट’ किया !
अनुराग ठाकुर की बात इतनी मासूम नहीं थी. जाति-व्यवस्था से बीमार इस समाज में जाति को आदमी होने की हमारी हैसियत से जोड़ दिया गया है. कहते ही हैं न कि जो जाती नहीं है वह जाति है. अनुराग ठाकुर उसी बीमार-समाज के प्रतिनिधि हैं. संघवादी सोच ही इस बीमारी से ग्रसित है. इसलिए राहुल गांधी की जाति क्या है, इसका जवाब वही है जो राहुल गांधी ने उस दिन लोकसभा में दिया : उन्होंने पलट कर अनुराग ठाकुर से उनकी जाति नहीं पूछी.
(04.08.2024)
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