(ગેય કૃતિ)
જળને જાળવીએ જાણી જાણી.
પડે ના પોકાર કદી પાણી પાણી.
અમરત ભૂમિ તણું સૌની જરૂરત,
વાપરીએ જ્યમ સૌ વાણી વાણી.
જગના તાત તણો એક આધાર જે,
પાકે મૌલાત લઈએ માણી માણી.
પાણી બચાવીએ કર્તવ્ય સૌનું,
રહીએ ના વાત કરી શાણી શાણી.
જળને જીવન તમે જાણો સદાએ,
ગાઈએ રાગ કરી સૌ તાણી તાણી.
પોરબંદર.
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 यह भी कहना जरूरी है कि यदि निर्मल वर्मा न होते तो मेरे पास मिलान कुंडेरा भी नहीं होते. निर्मल वर्मा ने ही मिलान कुंडेरा से, उनके लेखन से मेरा परिचय करवाया था. वह दुबचैक का चेकोस्लोवाकिया था जिसे रूसी टैंकों ने घेर कर मार डाला था – बहुत कुछ उसी तरह जिस तरह आज वे ही रूसी टैंक यूक्रेन को घेर कर मारते जा रहे हैं. तब भी ऐसा ही था, आज भी ऐसा ही है कि सारी दुनिया तमाशाबीन बनी हुई थी. निर्मल वर्मा तब चेकोस्लोवाकिया में थे और चुप नहीं थे; यहां भारत में जयप्रकाश नारायण थे और चुप नहीं थे. जब भारत में कोई सोवियत खेमे के खिलाफ बोलने की हिमाकत नहीं करता था, जयप्रकाश चेक लोगों की स्वतंत्रता के पक्ष में खुल कर सामने आए थे, एक दवाब खड़ा करने की कोशिश भी की थी.  मानवीय गरिमा के हनन पर जो साहित्य चुप रहे तो वह साहित्य नहीं है;  जो गांधीवाला चुप रहे, वह गांधीवाला नहीं है, मेरी यह समझ उसी दौर में बनी. उसी दौर में मिलान कुंडेरा का साहित्य भी बना. विचार न हो तो आदमी होना शक्य नहीं है; प्रतिबद्धता न हो तो कलम उठाने से अर्थहीन काम दूसरा नहीं है. प्रतिबद्धता और ढोलबाजी में जो फर्क है, उसका  विवेक खोये नहीं, यह जरूरी है. मुझे कुंडेरा इसलिए ही पसंद थे, अपने-से लगते थे. वे बला की प्रतिबद्धता से लिखते रहे लेकिन उनके समस्त लेखन में कोई ढोलबाजी नहीं थी.
यह भी कहना जरूरी है कि यदि निर्मल वर्मा न होते तो मेरे पास मिलान कुंडेरा भी नहीं होते. निर्मल वर्मा ने ही मिलान कुंडेरा से, उनके लेखन से मेरा परिचय करवाया था. वह दुबचैक का चेकोस्लोवाकिया था जिसे रूसी टैंकों ने घेर कर मार डाला था – बहुत कुछ उसी तरह जिस तरह आज वे ही रूसी टैंक यूक्रेन को घेर कर मारते जा रहे हैं. तब भी ऐसा ही था, आज भी ऐसा ही है कि सारी दुनिया तमाशाबीन बनी हुई थी. निर्मल वर्मा तब चेकोस्लोवाकिया में थे और चुप नहीं थे; यहां भारत में जयप्रकाश नारायण थे और चुप नहीं थे. जब भारत में कोई सोवियत खेमे के खिलाफ बोलने की हिमाकत नहीं करता था, जयप्रकाश चेक लोगों की स्वतंत्रता के पक्ष में खुल कर सामने आए थे, एक दवाब खड़ा करने की कोशिश भी की थी.  मानवीय गरिमा के हनन पर जो साहित्य चुप रहे तो वह साहित्य नहीं है;  जो गांधीवाला चुप रहे, वह गांधीवाला नहीं है, मेरी यह समझ उसी दौर में बनी. उसी दौर में मिलान कुंडेरा का साहित्य भी बना. विचार न हो तो आदमी होना शक्य नहीं है; प्रतिबद्धता न हो तो कलम उठाने से अर्थहीन काम दूसरा नहीं है. प्रतिबद्धता और ढोलबाजी में जो फर्क है, उसका  विवेक खोये नहीं, यह जरूरी है. मुझे कुंडेरा इसलिए ही पसंद थे, अपने-से लगते थे. वे बला की प्रतिबद्धता से लिखते रहे लेकिन उनके समस्त लेखन में कोई ढोलबाजी नहीं थी. વિદ્યાર્થી મિત્રો આવ્યા છે.”
વિદ્યાર્થી મિત્રો આવ્યા છે.”