Opinion Magazine
Opinion Magazine
Number of visits: 9292899
  •  Home
  • Opinion
    • Opinion
    • Literature
    • Short Stories
    • Photo Stories
    • Cartoon
    • Interview
    • User Feedback
  • English Bazaar Patrika
    • Features
    • OPED
    • Sketches
  • Diaspora
    • Culture
    • Language
    • Literature
    • History
    • Features
    • Reviews
  • Gandhiana
  • Poetry
  • Profile
  • Samantar
    • Samantar Gujarat
    • History
  • Ami Ek Jajabar
    • Mukaam London
  • Sankaliyu
  • About us
    • Launch
    • Opinion Online Team
    • Contact Us

बांग्लादेश में हिंदुओं के विरूद्ध बढ़ती हिंसा और भारत में बढ़ता इस्लामोफोबिया

राम पुनियानी|Opinion - Opinion|16 August 2024

राम पुनियानी

जनता के आक्रोश के ज्वार ने बांग्लादेश को हिला दिया है. वहां जो हो रहा है उसके बारे में कई झूठी खबरें फैलाई जा रही हैं, जिनके नतीजे में भारत में इस्लामोफोबिया ने जोर पकड़ लिया है. शेख हसीना ने बांग्लादेश पर पिछले 15 वर्षों से बहुत सख्ती से शासन किया. उन्होंने विपक्ष का जबरदस्त दमन किया और यहां तक कि सभी प्रमुख विपक्षी नेताओं को या तो जेलों में ठूंस दिया या उनके घरों में नजरबंद कर दिया.

बांग्लादेश में स्वतंत्रता सेनानियों की संतानों को आरक्षण के मुद्दे को लेकर छात्रों का आंदोलन भड़का. यह आरक्षण 50 साल से भी अधिक समय पहले पाकिस्तान के चंगुल से आजाद होने के सफल संघर्ष के बाद से ही निरंतर जारी था. इस मुद्दे पर बांग्लादेश का युवा वर्ग आक्रोशित था और उनके आक्रोश को हसीना सरकार ने सख्ती से दबाया. इससे आंदोलन ने बहुत बड़ा और गंभीर स्वरूप अख्तियार कर लिया.

हसीना के देश छोड़ने के बाद वहां अराजकता फैल गई. आवामी लीग (हसीना की पार्टी) के समर्थकों पर हमले हुए और उसके कार्यालयों को आग के हवाले कर दिया गया. “हिंदू बुद्धिस्ट क्रिस्चियन यूनिटी काउंसिल” एवं “बांग्लादेश पूजा उद्यापन परिषद” के अनुसार 5 अगस्त को हसीना सरकार के पतन के बाद से बांग्लादेश के 52 जिलों में अल्पसंख्यक समुदाय पर हमले की 205 घटनाएं हुईं. अंतरिम सरकार का नेतृत्व करने के लिए छात्रों ने प्रोफेसर युनुस को चुना. अल्पसंख्यकों ने सुरक्षा की मांग करते हुए एक विशाल रैली आयोजित की. प्रोफेसर युनुस ने तुरंत एक अपील जारी करते हुए आंदोलनरत छात्रों से हिंदुओं, ईसाईयों और बौद्धों सहित सभी अल्पसंख्यक समुदायों को हमलों से सुरक्षा प्रदान करने की अपील की. “क्या यह उनका देश नहीं है? आपने देश की रक्षा की है, क्या आप कुछ परिवारों की रक्षा नहीं कर सकते?” उन्होंने आंदोलनरत छात्रों से सवाल किया.

यह अपील बहुत प्रभावी साबित हुई. बांग्लादेश के ‘द डेली स्टार’ समाचारपत्र के संपादक महफूज अनाम के अनुसार, इसके बाद हिंदुओं के खिलाफ हो रही हिंसा थम गई.  यहां तक कि दक्षिणपंथी जमात-ए-इस्लामी ने तक मंदिरों की रक्षा के लिए दस्तों का गठन किया. द वायर के करण थापर को दिए गए एक साक्षात्कार में संपादक ने इस ओर ध्यान दिलाया कि भारत और बांग्लादेश के दक्षिणपंथियों को एक दूसरे से ताकत हासिल होती है. उनके अनुसार पांच दिन बाद अल्पसंख्यकों के विरूद्ध हो रही हिंसा पूरी तरह थम गई. उनके और कई अन्य यूट्यूबर्स के अनुसार भारत में तथ्यों की पुष्टि किए बिना बहुत सारी अफवाहें और फेक न्यूज फैलाई गईं.

इसका एक बड़ा उदाहरण है क्रिकेट खिलाड़ी लीपन दास के घर को आग लगाए जाने की खबर और वीडियो. बीबीसी फेक्ट चैक से यह पता लगा कि यह घर किसी और क्रिकेट खिलाड़ी का था जो आवामी लीग का नजदीकी है और दो कार्यकालों के लिए सांसद रह चुका है. इसी तरह एक अन्य वीडियो में दावा किया गया कि वह चिटगांव में एक मंदिर को जलाए जाने का वीडियो है. फैक्ट चैक से पता लगा कि इस वीडियो में जिस भवन को जलता दिखाया गया है वह आवामी लीग का कार्यालय है, जो मंदिर के नजदीक है. ऐसे बहुत से वीडियो हैं जिनमें हिंदू मंदिरों को जलते और हिंदुओं की हत्या होते दिखाया गया है. लेकिन कुछ ऐसे वीडियो भी हैं जिन्हें दबा दिया गया – वे वीडियो जिनमें छात्रों द्वारा मंदिरों की रक्षा के लिए बनाए गए दस्तों को दिखाया गया है. “हिंदू एवं मुस्लिम दोनों पीड़ित हैं. लेकिन वे लोग राजनीति से प्रेरित हिंसा की चुनिंदा घटनाओं को साम्प्रदायिक हिंसा बताते हैं. जब हिंसा का शिकार होने वाला हिंदू होता है तो इसे धर्म आधारित प्रताड़ना बताकर जोर-शोर से प्रचारित किया जाता है, जिससे भारत में मुसलमानों के प्रति घृणा बढ़ती है” (एक फैक्ट चैकर शोहानूर रहमान ने द क्विंट को बताया).

इस समय बांग्लादेश में सत्ता के दो केन्द्र हैं – प्रोफेसर युनुस और आंदोलन का नेतृत्व करने वाले छात्र. दोनों ही बांग्लादेश के समावेशी चरित्र का समर्थन कर रहे हैं और हिंदुओं सहित सभी अल्पसंख्यकों की रक्षा के प्रति दृढ़ संकल्पित हैं. निःसंदेह जमात-ए-इस्लामी एक इस्लामिक राष्ट्र का स्वप्न देखता है, बीएनपी की नेता खालिदा जिया भी दक्षिणपंथी और इस्मालिक राष्ट्र की समर्थक हैं. मगर बहुमत का नजरिया वही है जो युनुस और छात्रों का है. प्रोफेसर युनुस ने बहुवाद के प्रति अपनी प्रतिबद्धतता दिखाते हुए, 13 अगस्त को ढाका के ढाकेश्वरी मंदिर का दौरा किया जहाँ वे हिन्दुओं के नेताओं से मिले, उनके दर्द को सुना और उनकी सुरक्षा का आश्वासन दिया. यह बहुत ही संतोषप्रद है.

इस बीच, भारत में नफरत फैलाने वाले और हिंदू राष्ट्रवाद के समर्थक बड़े पैमाने पर घृणा फैलाने और भड़काऊ संदेश भेजने में जुटे हैं. भाजपा सांसद कंगना रनौत ने ट्वीट किया “शांति वायु या सूर्य की रोशनी की तरह नहीं है, जिसे आप अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते हैं और वह आपको बिना कोई कीमत चुकाए हासिल होगी. महाभारत हो या रामायण, दुनिया में सबसे बड़ी लड़ाईयां अमन हासिल करने के लिए लड़ी गई हैं. अपनी तलवारें उठाओ, उनकी धार तेज करो, और प्रतिदिन लड़ने-भिड़ने का थोड़ा-बहुत अभ्यास करो”. कई अन्य लोग पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ बांग्लादेश को जानबूझकर “इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ बांग्लादेश” के नाम से पुकार रहे हैं, जिसका बहुत ही पतित उद्धेश्य है.

इसी तरह कई ट्रोल और भाजपा नेता भड़काने वाली बातें फैला रहे हैं. इस समय क्या किया जाना आवश्यक है? हमें बांग्लादेश के अल्पसंख्यको के अधिकारों के पक्ष में खड़ा होना चाहिए. अंतरिम सरकार अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का आव्हान कर रही है और अल्पसंख्यक अपने अधिकारों के समर्थन में एक रैली का आयोजन सफलतापूर्वक कर सके. इन दोनों बातों से यह प्रतीत होता है कि बांग्लादेश में धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए स्थान है, जिसका समर्थन और सराहना की जानी चाहिए. लेकिन अल्पसंख्यकों के अधिकारों के हनन के सभी मामलों में एक सा रवैया अपनाया जाना चाहिए. हमें अपने देश में भी अल्पसंख्यकों के अधिकारों का समर्थन करना चाहिए ताकि हम पड़ोसी देशों के समक्ष एक आदर्श प्रस्तुत कर सकें.

पूरा दक्षिण एशिया साम्प्रदायिक राष्ट्रवाद के दौर से गुजर रहा है. श्रीलंका एक साल पहले तक साम्प्रदायिकता की गिरफ्त में था. पाकिस्तान अल्पसंख्यकों के अधिकारों का हनन करने के लिए कुख्यात है और म्यांमार भी इसी रास्ते पर चल रहा है. जो लोग तलवार निकालने की बात करते हैं और अन्य घृणा उत्पन्न करने वाले संदेशों का आदान-प्रदान करते हैं, उनका कुछ भी नहीं बिगड़ता, उन पर घृणा फैलाने और विभाजनकारी प्रवृत्ति को बढ़ावा देने के आरोपों में कोई कानूनी कार्यवाही नहीं होती.

जनसंख्या संबंधी आंकड़ों के संबंध में गलत धारणाओं पर आधारित ‘हिंदू खतरे में’ के झूठे प्रचार को सोशल मीडिया में कही जा रही उन बातों से बल मिलता है जो तथ्यों की पुष्टि किए बिना फैलाई जाती हैं. बहुवाद और लोकतंत्र के पक्षधरों के कंधों पर इस समय बहुत बड़ी जिम्मेदारी है. घृणा फैलाने वालों का बहुत बड़ा तंत्र बन गया है जो अपने विभाजनकारी एजेंडे पर अमल करने के लिए उद्यत है. इसका मुकाबला करने के लिए शांति एवं मैत्री में यकीन रखने वाले लोगों को और बड़ी संख्या में आगे आना होगा ताकि घृणा की इस फैलती आग को काबू में किया जा सके और सही तथ्य सामने लाने की प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी व सघन बनाया जा सके.

हसीना का दुहरा चरित्र था. जहां एक ओर वे तानाशाह थीं,  वहीं दूसरी ओर उनके राज में बहुवाद कुछ हद तक कायम रहा. जरूरी यह है कि बहुवाद और लोकतंत्र दोनों को सशक्त किया जाए. बांग्लादेश सरकार के समक्ष यह चुनौती है कि वह इन दोनों की जड़ें मजबूत करे. भारत को इन मूल्यों को बढ़ावा देकर दक्षिण एशिया के समक्ष एक आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए. विभिन्न समुदायों के बीच संबंध प्रगाढ़ करने का प्रयास होना चाहिए, अल्पसंख्यकों के हित के सकारात्मक कदम उठाए जाने चाहिए और सभी के मानवाधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए. किसी भी समुदाय के खिलाफ घृणा फैलाने वाली बातें नहीं की जानी चाहिए.

14 अगस्त 2024
(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया. लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं) 

Loading

16 August 2024 राम पुनियानी
← સ્વતંત્રતા ‘આવી’ તો નથી માંગી !
Violence against Hindus in Bangladesh: Boost to Islamophobia in India →

Search by

Opinion

  • ‘ગુજરાત સમાચાર’ : હે નાગરિકો, ધર્મોક્રસીમાં વિશ્વગુરુ બનવા તમે ગુલામ બનો!
  • મંત્રી વિજય શાહ ઉપર એફ.આઈ.આર. : રાષ્ટ્રીય સુરક્ષાનો ન્યાયિક- નાગરિક વ્યૂહ 
  • ગુજરાતમાં ગુજરાતીની ઉપેક્ષા દંડનીય અપરાધ ગણાવો જોઈએ …
  • દેરિદા અને વિઘટનશીલ ફિલસૂફી – ૩  
  • વિસ્તારવાદને પડતો મૂકો : નકશા કરતાં વધારે પ્રેમ માણસને કરો

Diaspora

  • ભાષાના ભેખધારી
  • બ્રિટનમાં ગુજરાતી ભાષા-સાહિત્યની દશા અને દિશા
  • દીપક બારડોલીકર : ડાયસ્પોરી ગુજરાતી સર્જક
  • મુસાજી ઈસપજી હાફેસજી ‘દીપક બારડોલીકર’ લખ્યું એવું જીવ્યા
  • દ્વીપોના દેશ ફિજીમાં ભારતીય સંસ્કૃતિ અને હિન્દી

Gandhiana

  • બાપુ અને બાદશાહ 
  • ચિકિત્સક બાપુ
  • બાપુ અને બડેદાદા
  • રાષ્ટ્રપિતા
  • ગાંધીજીનો ઘરડો દોસ્ત

Poetry

  • એક ટીપું
  • સાત કાવ્યો
  • એમના પગના તળિયામાં દુનિયાનો નકશો છે
  • બે કાવ્યો
  • પાયમાલ થઇ ગઇ… 

Samantar Gujarat

  • મુસ્લિમો કે આદિવાસીઓના અલગ ચોકા બંધ કરો : સૌને માટે એક જ UCC જરૂરી
  • ભદ્રકાળી માતા કી જય!
  • ગુજરાતી અને ગુજરાતીઓ … 
  • છીછરાપણાનો આપણને રાજરોગ વળગ્યો છે … 
  • સરકારને આની ખબર ખરી કે … 

English Bazaar Patrika

  • Economic Condition of Religious Minorities: Quota or Affirmative Action
  • To whom does this land belong?
  • Attempts to Undermine Gandhi’s Contribution to Freedom Movement: Musings on Gandhi’s Martyrdom Day
  • Destroying Secularism
  • Between Hope and Despair: 75 Years of Indian Republic

Profile

  • સમાજસેવા માટે સમર્પિત : કૃષ્ણવદન જોષી
  • નારાયણ દેસાઈ : ગાંધીવિચારના કર્મશીલ-કેળવણીકાર-કલમવીર-કથાકાર
  • મૃદુલા સારાભાઈ
  • મકરંદ મહેતા (૧૯૩૧-૨૦૨૪): ગુજરાતના ઇતિહાસલેખનના રણદ્વીપ
  • અરુણભાઈનું ઘડતર – ચણતર અને સહજીવન

Archives

“Imitation is the sincerest form of flattery that mediocrity can pay to greatness.” – Oscar Wilde

Opinion Team would be indeed flattered and happy to know that you intend to use our content including images, audio and video assets.

Please feel free to use them, but kindly give credit to the Opinion Site or the original author as mentioned on the site.

  • Disclaimer
  • Contact Us
Copyright © Opinion Magazine. All Rights Reserved