Opinion Magazine
Opinion Magazine
Number of visits: 9379738
  •  Home
  • Opinion
    • Opinion
    • Literature
    • Short Stories
    • Photo Stories
    • Cartoon
    • Interview
    • User Feedback
  • English Bazaar Patrika
    • Features
    • OPED
    • Sketches
  • Diaspora
    • Culture
    • Language
    • Literature
    • History
    • Features
    • Reviews
  • Gandhiana
  • Poetry
  • Profile
  • Samantar
    • Samantar Gujarat
    • History
  • Ami Ek Jajabar
    • Mukaam London
  • Sankaliyu
    • Digital Opinion
    • Digital Nireekshak
    • Digital Milap
    • Digital Vishwamanav
    • એક દીવાદાંડી
    • काव्यानंद
  • About us
    • Launch
    • Opinion Online Team
    • Contact Us

क्या कांग्रेस घोषणापत्र मुस्लिम लीग की सोच को प्रतिबिंबित करता है?

Vipool Kalyani|Opinion - Opinion|19 April 2024

राम पुनियानी

गत 4 अप्रैल 2024 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 2024 के आमचुनाव के लिए अपना घोषणापत्र जारी किया. पार्टी ने इसे ‘न्याय पत्र’ का नाम दिया है. इसमें जाति जनगणना, आरक्षण पर 50 प्रतिशत की ऊपरी सीमा हटाने, युवाओं के लिए रोज़गार, इंटर्नशिप की व्यवस्था, गरीबों के लिए आर्थिक मदद आदि का वायदा किया गया है. घोषणापत्र का फोकस महिलाओं, आदिवासियों, दलितों, ओबीसी, किसानों और युवाओं व विद्यार्थियों के लिए न्याय पर है. कांग्रेस के एक प्रवक्ता ने कहा कि घोषणापत्र यह वादा करता है कि भाजपा के पिछले 10 सालों के शासनकाल में समाज के विभिन्न तबकों के साथ हुए अन्याय को समाप्त किया जाएगा.

श्री नरेन्द्र मोदी ने इस घोषणापत्र की निंदा करते हुए कहा कि घोषणापत्र पर (स्वतंत्रता-पूर्व की) मुस्लिम लीग की विघटनकारी राजनीति की छाप है और यह वाम विचारधारा से प्रभावित है. यह सुनकर भारतीय राष्ट्रवादी विचारधारा के सर्जक और आरएसएस के द्वितीय सरसंघचालक एम.एस. गोलवलकर की याद आना स्वाभाविक है, जिन्होंने अपनी पुस्तक ‘बंच ऑफ़ थॉट्स’ में बताया है कि हिन्दू राष्ट्र के लिए तीन आतंरिक खतरे हैं – मुसलमान, ईसाई और कम्युनिस्ट. इनमें से दो की चर्चा भाजपा समय-समय पर विभिन्न स्तरों पर करती रही है और अब भी करती है.

साम्प्रदायिकता भाजपा का प्रमुख हथियार है. सन 1937 के राज्य विधानमंडल चुनावों के लिए मुस्लिम लीग के घोषणापत्र और चुनाव कार्यक्रम में मुस्लिम पहचान से जुड़ी मांगें थीं और उसमें समाज के कमज़ोर वर्गों की भलाई के लिए सकारात्मक क़दमों की कहीं चर्चा नहीं थी.

भाजपा के आरोपों के जवाब में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे ने एकदम ठीक कहा कि भाजपा के पुरखे और मुस्लिम लीग एक दूसरे के सहयोगी थे. सच तो यह है कि धार्मिक राष्ट्रवादी समूहों –  मुस्लिम लीग, हिन्दू महासभा और आरएसएस – में अनेक समानताएं हैं. औपनिवेशिक भारत में आ रहे परिवर्तनों की प्रतिक्रिया में ये तीनों संगठन समाज के अस्त होते हुए वर्गों ने गठित किए थे. ब्रिटिश भारत में औद्योगीकरण, आधुनिक शिक्षा के प्रसार व न्यायपालिका और नई प्रशासनिक व्यवस्था की स्थापना के साथ-साथ संचार के साधनों के विकास के कारण कई नए वर्ग उभरे – श्रमजीवी वर्ग, आधुनिक शिक्षा प्राप्त वर्ग और आधुनिक उद्योगपति. इससे पुराने शासक वर्ग के जमींदारों और राजाओं-नवाबों को खतरा महसूस होने लगा. उन्हें लगा कि उनका सामाजिक-राजनैतिक-आर्थिक वर्चस्व समाप्त हो जाएगा.

उभरते हुए वर्गों के नारायण मेघाजी लोखंडे, कामरेड सिंगारवेलु और कई अन्यों ने श्रमिकों को एकजुट किया. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और कई अन्य दल इन वर्गों की राजनैतिक अभिव्यक्ति के प्रतीक बन कर उभरे. स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व इन दलों के मूलभूत मूल्य थे. ज़मींदारों और राजाओं के अस्त होते वर्गों ने यूनाइटेड पेट्रियोटिक एसोसिएशन का गठन किया, जो अंग्रेजों के प्रति वफादार थी. ये वर्ग जातिगत और लैंगिक ऊंचनीच में पूर्ण आस्था रखते थे. समय के साथ यह संगठन बिखर गय और इसमें से 1906 में मुस्लिम लीग और 1915 में हिन्दू महासभा उभरे. सावरकर ने अपनी पुस्तक “एसेंशियल्स ऑफ़ हिंदुत्व” में यह प्रतिपादित किया कि भारत में दो राष्ट्र हैं – हिन्दू राष्ट्र और मुस्लिम राष्ट्र. इसी से प्रेरित हो कर 1925 में गठित आरएसएस ने हिन्दू राष्ट्र का एजेंडा अपनाया तो लन्दन में पढ़ने वाले कुछ मुस्लिम लीग समर्थकों ने ‘पकिस्तान’ शब्द गढ़ा.

इन दोनों धाराओं के पैरोकार क्रमशः हिन्दू राजाओं और मुस्लिम बादशाहों-नवाबों के शासनकाल को देश के इतिहास का सुनहरा और महान दौर मानते थे. स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान दोनों ने अंग्रेजो का भरपूर समर्थन किया. उनकी रणनीति यह थी कि अंग्रेजों के साथ मिलकर वे अपने शत्रु (हिन्दुओं या मुसलमानों) से निपटना चाहते थे. हिन्दू राष्ट्रवाद के प्रमुख स्तंभ सावरकर ने अहमदाबाद में हिन्दू महासभा के 19वें अधिवेशन को संबोधित करते हुए कहा, “आज के भारत को एक और एकसार राष्ट्र नहीं माना जा सकता. उलटे यहाँ दो मुख्य राष्ट्र हैं – हिन्दू और मुसलमान.

द्विराष्ट्र सिद्धांत की आधार पर ही जिन्ना ने 1940 में लाहौर में आयोजित मुस्लिम लीग के अधिवेशन में अलग मुस्लिम राष्ट्र की मांग की.

आरएसएस के अनाधिकारिक मुखपत्र ‘आर्गेनाइजर’ ने लिखा,”….हिंदुस्तान में केवल हिन्दू ही राष्ट्र हैं और हमारा राष्ट्रीय ढांचा इसी मज़बूत नींव पर रखा जाना चाहिए….यह राष्ट्र हिन्दुओं, हिन्दू परम्पराओं, संस्कृति, विचारों और महत्वकांक्षाओं पर आधारित होना चाहिए.”

मुस्लिम लीग और हिन्दू महासभा ने बंगाल, सिंध और नार्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस में 1939 में संयुक्त सरकारें बनाईं. सिंध में जब मुस्लिम लीग ने विधानमंडल में पाकिस्तान के गठन के समर्थन में प्रस्ताव पारित किया तब हिन्दू महासभा के सदस्य चुप्पी साधे रहे. सुभाष चन्द्र बोस ने जर्मनी से प्रसारित अपने वक्तव्य में मुस्लिम लीग और हिन्दू महासभा दोनों से ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आन्दोलन में शामिल होने की अपील की. ये दोनों और आरएसएस 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन से दूर रहे. सावरकर ने द्वितीय विश्वयुद्ध में जीत हासिल करने में इंग्लैंड की मदद करने का हर संभव प्रयास किया. उन्होंने कहा, “हर गाँव और हर शहर में हिन्दू महासभा की शाखाओं को सक्रिय रूप से हिन्दुओं को (अंग्रेज) थल, जल और वायु सेना और फौजी समान बनाने वाले कारखानों में भर्ती होने के लिए प्रेरित करना चाहिए.” जिस वक्त सुभाष बोस की आजाद हिन्द फ़ौज, ब्रिटिश सेना से लड़ रही थी, उस समय सावरकर ब्रिटिश सेना की मदद कर रहे थे.

यह साफ़ है कि हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग दोनों अंग्रेजों के हितों की पोषक थीं. सुभाष बोस इन दोनों संगठनों की सांप्रदायिक राजनीति के कड़े विरोधी थी और दोनों ने अंग्रेजों के खिलफ संघर्ष में भागीदारी करने की बोस की अपील पर कोई ध्यान नहीं दिया. जनसंघ के संस्थापक श्यामाप्रसाद मुख़र्जी, जो मुस्लिम लीग के साथ बंगाल की गठबंधन सरकार में मंत्री थे, ने वाइसराय को लिखा कि 1942 के आन्दोलन को नियंत्रित किया जाए और यह वायदा किया कि वे यह सुनिश्चित करेंगे कि बंगाल में इस आन्दोलन को कुचल दिया जाये. दिनांक 26 जुलाई, 1942 को लिखे अपने पत्र में उन्होंने लिखा, “अब मैं उस स्थिति के बारे में कुछ कहना चाहूँगा जो कांग्रेस द्वारा शुरू किये गए किसी भी व्यापक आन्दोलन के कारण प्रान्त में बन सकती है. जो भी सरकार वर्तमान में शासन कर रही है, उसे युद्ध के इस दौर में आमजनों को भड़काने के किसी भी ऐसे प्रयास, जिससे आतंरिक गड़बड़ियाँ फैल सकती हैं और असुरक्षा का वातावरण बन सकता है, का प्रतिरोध करना चाहिए.”

सुभाष बोस की तरह आंबेडकर भी मुस्लिम राष्ट्रवाद और हिन्दू राष्ट्रवाद की विचारधाराओं को एक खांचे में रखते थे. उन्होंने सन 1940 में प्रकाशित अपनी पुस्तक “पाकिस्तान ऑर पार्टीशन ऑफ़ इंडिया” में लिखा, “यह अजीब लग सकता है मगर मिस्टर सावरकर और मिस्टर जिन्ना एक राष्ट्र बनाम दो राष्ट्र के मुद्दे पर एक-दूसरे के विरोधी होने की बजाय, एक-दूसरे से पूरी तरह सहमत हैं. दोनों सहमत हैं – सहमत ही नहीं बल्कि जोर देकर कहते हैं- कि भारत में दो राष्ट्र हैं – एक मुस्लिम राष्ट्र और दूसरा हिन्दू राष्ट्र.”

कोई आश्चर्य नहीं कि दबे-कुचले लोगों के कल्याण की बातें भाजपा-आरएसएस को मंज़ूर नहीं हैं क्योंकि वे उसके हिन्दू राष्ट्र के एजेंडा के खिलाफ हैं. मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान में वंचित वर्गों की क्या स्थिति है, यह हम सब के सामने है. आशा जगाने वाले कांग्रेस के घोषणापत्र की मोदी की आलोचना, उनके विचारधारात्मक पुरखों की सोच के अनुरूप है.

17/04/2024

(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)  

Loading

19 April 2024 Vipool Kalyani
← વિવિધ રામકથાઓ સ્વતંત્ર અભ્યાસ માગે છે
ચલ મન મુંબઈ નગરી—244 →

Search by

Opinion

  • મુઝકો તુમ જો મિલે યે જહાં મિલ ગયા
  • ગુરુદત્ત શતાબ્દીએ –
  • PMનો ગ્લાબલ સાઉથનો પ્રવાસ : દક્ષિણ દેશો સાથેની કૂટનીતિ પ્રભાવી રહેશે કે સાંકેતિક
  • સવાલ બે છે; એક તિબેટના ભવિષ્ય વિષે અને બીજો તિબેટને લઈને ભારત-ચીન વચ્ચેના સંબંધો વિષે
  • ચલ મન મુંબઈ નગરી—297

Diaspora

  • આપણને આપણા અસ્તિત્વ વિશે ઊંડા પ્રશ્નો પૂછતી ફિલ્મ ‘ધ બ્લેક એસેન્સ’
  • ભાષાના ભેખધારી
  • બ્રિટનમાં ગુજરાતી ભાષા-સાહિત્યની દશા અને દિશા
  • દીપક બારડોલીકર : ડાયસ્પોરી ગુજરાતી સર્જક
  • મુસાજી ઈસપજી હાફેસજી ‘દીપક બારડોલીકર’ લખ્યું એવું જીવ્યા

Gandhiana

  • ‘રાષ્ટ્રપિતાનો વારસો એમના વંશજો જ નથી’ — રાજમોહન ગાંધી
  • સરદારનો ગાંધી આદર્શ 
  • કર્મ સમોવડ
  • સ્વતંત્રતાનાં પગરણ સમયે
  • આપણે વેંતિયાઓ મહાત્માને માપવા નીકળ્યા છીએ!

Poetry

  • હાર
  • વરસાદમાં દરવાજો પલળ્યો
  • વચ્ચે એક તળાવ હતું
  • ઓલવાયેલો સિતારો
  • કારમો દુકાળ

Samantar Gujarat

  • ખાખરેચી સત્યાગ્રહ : 1-8
  • મુસ્લિમો કે આદિવાસીઓના અલગ ચોકા બંધ કરો : સૌને માટે એક જ UCC જરૂરી
  • ભદ્રકાળી માતા કી જય!
  • ગુજરાતી અને ગુજરાતીઓ … 
  • છીછરાપણાનો આપણને રાજરોગ વળગ્યો છે … 

English Bazaar Patrika

  • Economic Condition of Religious Minorities: Quota or Affirmative Action
  • To whom does this land belong?
  • Attempts to Undermine Gandhi’s Contribution to Freedom Movement: Musings on Gandhi’s Martyrdom Day
  • Destroying Secularism
  • Between Hope and Despair: 75 Years of Indian Republic

Profile

  • સાહિત્ય અને સંગીતનો ‘સ’ ઘૂંટાવનાર ગુરુ: પિનુભાઈ 
  • સમાજસેવા માટે સમર્પિત : કૃષ્ણવદન જોષી
  • નારાયણ દેસાઈ : ગાંધીવિચારના કર્મશીલ-કેળવણીકાર-કલમવીર-કથાકાર
  • મૃદુલા સારાભાઈ
  • મકરંદ મહેતા (૧૯૩૧-૨૦૨૪): ગુજરાતના ઇતિહાસલેખનના રણદ્વીપ

Archives

“Imitation is the sincerest form of flattery that mediocrity can pay to greatness.” – Oscar Wilde

Opinion Team would be indeed flattered and happy to know that you intend to use our content including images, audio and video assets.

Please feel free to use them, but kindly give credit to the Opinion Site or the original author as mentioned on the site.

  • Disclaimer
  • Contact Us
Copyright © Opinion Magazine. All Rights Reserved