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चंपारण सत्याग्रह शताब्दी

जयंत दिवाण, जयंत दिवाण|Gandhiana|26 July 2016

संस्मरण

(Sitting L to R)Rajendra Prasad and Anugrah Narayan Sinha during Mahatma Gandhi's 1917 Champaran Satyagraha

‘भितहरवा’ पश्चिम चंपारण का छोटासा देहाती गांव है. नरकटीयागंज रेल का जंक्शन है. यहां से नेपाल की ओर रेल की पटरी बिछी है. ‘भितहरवा’ जाने के लिए इसी पटरी से रेल दौड़ती है. ‘भितहरवा’ आज रेल्वे स्टेशन है. लेकिन पहले यह रेल्वे स्टेशन नहीं था.

महात्मा गांधी जब चंपारण आये तब ‘भितहरवा’ में उन्होंने आश्रम खोला था. आज भी यह आश्रम ‘स्मारक’ के रूप में खड़ा है.

पुंडलीकजी कातगडे गांधीजी के आवाहन पर ‘भितहरवा’ के आश्रम में सेवा के लिए आये थे. तब गांधीजी चंपारण-सत्याग्रह में डटे थे. यह सन १९१७ की बात है. पुंडलीकजी जब आश्रम में आये तब उनकी उम्र मात्र २३ साल की थी.

चंपारण का सत्याग्रह ख़त्म हुआ. देश आजाद हुआ. चंपारण के कार्यकर्ताओं की इच्छा हुअी की ‘भितहरवा में रेल्वे स्टेशन होना चाहिये. ताकि इस ऐतिहासीक-स्मारक को यात्री भेट दे सके. पुंडलीकजी बेळगाव के थे. उन्होंने ‘भितहरवा में अपनी तरुणाई के दिन बिताये थे. उनके चंपारण के कार्यकर्ताओंसे आत्मिय संबंध थे. पुंडलीकजी काम में जुट गये. सरकारसे खटपट कर उन्होंने भितहरवा में रेल्वे स्टेशन बनवा ही लिया.

कार्यकर्ताओं का आग्रह था की रेल्वे स्टेशन का उदघाटन पुंडलीकजी के हाथों ही करना है. रेल मंत्रीने उनकी इच्छा को मान लिया. उदघाटन कार्यक्रम की तार पुंडलीकजी को भेजी गयी. तार घर पहुँची तब पुंडलीकजी घर पर नहीं थे. चार दिन बाद वे घर लौटे तब उन्हें उदघाटन की जानकारी मिली. हवाई जहाज का सफर कर दौड़धूप करते हुए वे ‘भितहरवा’ पहुँचे. लोगोंने कहा, “हमें पता ही था. कुछ भी हो जाये पुंडलीकजी जरुर आयेंगे.” कर्यकर्ताओ ने रेलमंत्रीजी से पहलेही कह रखा था, “अगर पुंडलीकजी नहीं आये तो ही आपके हाथों उदघाटन होगा.” पुंडलीकजी समय पर पहुँच गये. पहला रेल टिकट उनके हाथों यात्री को दिया गया.

उस समय के मंत्री, कार्यकर्ता व लोगों की ‘सहजता’ मन को प्रसन्न करती है. वैसेही पुंडलीकजी का बिहार से विशेषत: चंपारण से जुड़ा नाता भी मन को भा जाता है.

पुंडलीकजी कातगडे

पुंडलीकजी चंपारण आयें तब उनकी उम्र २३ वर्ष की थी. ‘भितहरवा’ आश्रम में वे सेवा के लिए आये थे. गांधीजीने चंपारण में तीन आश्रम(शाला) खोले थे. इन आश्रमों के लिये उन्हें कार्यकर्ताओं की जरूरत थी. गांधीजीने बेळगाव के गंगाधरराव देशपांडे को पत्र लिखा. कार्यकर्ताओं की मांग की. यह सन १९१७ की बात है.

गंगाधरराव देशपांडे टिळक के अनुयायी थे. उन्हें कर्नाटक सिंह कहा जाता था. बेळगाव कांग्रेस की जिम्मेदारी गंगाधरराव देशपांडे इन्होंने ही ली थी. टिळक के अनुयायी गांधी के साथ जुड़ गये उनमें गंगाधरराव देशपांडे का नाम विशेष है. पुंडलीकजी युवा अवस्था में गंगाधररावसे जुड़ गये. उनके अनुयायी बने. गंगाधरराव के कारण पुंडलीकजीको लोकमान्य टिळक का सान्निध्य मिला. पुंडलीकजी ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने टिळक को भी देखा और गांधी के तो वे साथ ही हो गये.

गंगाधरराव से जब गांधीजीने कर्यकर्ताओं की मांग की तो उन्होंने पहले सदाशिव लक्ष्मण सोमण को  चंपारण भेजा. सोमण जब वहां से लौटे तो उन्होंने चंपारण की स्थिती तथा गोरे कोठीवाले एमेन की ज्यादती के बारे में विस्तारसे साथियों को बताया. गोरे कोठीवालों में एमेन सबसे क्रूर व धूर्त था. सोमणने उसकी क्रूरता का वर्णन किया था. जब पुंडलीकजी पर चंपारण जाने की बारी आयी तब उन्होंने गांधीजी के सामने शर्त रखी. अगर वे उन्हें ‘भितहरवा’ आश्रम में भेजेंगे तो ही वे चंपारण आयेंगे.  एमेन से दो दो हाथ करने की कुलबुलाहट उनमे थी. गांधीजी ने उनकी शर्त मान ली. और २३ वर्ष का यह युवक भितहरवा पहुँच गया.

पुंडलीकजी तब तक भितहरवा डटे रहे जब तक अंग्रेज सरकारने उन्हें जिले से जिला-बदर (जिला निष्कासन) nनहीं किया. एमेन के प्रत्येक बेकानुनी बातों को पुंडलीकजीने आव्हान दिया. एमेन की मनमानी को वे नकारते गये. उनके इस कृती से लोगों का भय दूर होने में मदद हुई. एमेन व सरकार को भी आव्हान दिया जा सकता है यह विश्वास लोगों में जगा. गांधीजी का कहना ही था कि भयभीत लोगों में जाकर बैठना यही हमारा काम है. पुंडलीकजी गांधी के अनुयायी थे. गांधी का काम ही भितहरवा आश्रम में बैठकर पुंडलीकजी कर रहे थे.

पुंडलीकजी का चंपारण के लोग व कार्यकर्ताओंसे अपनापन बना. स्नेह बना. राजेंद बाबू, ब्रजकिशोर बाबू, रामनवमी प्रसाद इनके परिवार के ही वे सदस्य बन गये. यह स्नेह उनकी मृत्यु तक टिका रहा.

पुंडलीकजी अविवाहित थे. बेळगाव में रहते थे. गांधीजी के रचनात्मक कार्यक्रम पर वे काम करते रहे. आजादी के आंदोलन में सक्रीय रहे. महाराष्ट्र व कर्नाटक के लोग उन्हें जानते हैं. वे लेखक थे. ́“'पुंडलीक́' नामसे उन्होंने आत्मचरित्र लिखा है. मराठी भाषा में वह है. चंपारण सत्याग्रह पर उन्होंने विस्तारसे लिखा है. चंपारण के उनके संस्मरण रोचक है.

***************

(यह संस्मरण हिंदी व अन्य भाषओं में प्रकाशित होने चाहिये. ‘कहाँनि:चंपारण सत्याग्रह की” …. यह मेरी किताब सर्व सेवा संघ प्रकाशित कर रहा है. मेरे मूल मराठी किताब का यह अनुवाद है. मराठी किताब भी जल्द प्रकाशित होने जा रही है. इस किताब में पुंडलीकजी के चंपारण सत्याग्रह पर स्वतंत्र प्रकरण दिया गया है.)

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26 July 2016 admin
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