Opinion Magazine
Number of visits: 9448691
  •  Home
  • Opinion
    • Opinion
    • Literature
    • Short Stories
    • Photo Stories
    • Cartoon
    • Interview
    • User Feedback
  • English Bazaar Patrika
    • Features
    • OPED
    • Sketches
  • Diaspora
    • Culture
    • Language
    • Literature
    • History
    • Features
    • Reviews
  • Gandhiana
  • Poetry
  • Profile
  • Samantar
    • Samantar Gujarat
    • History
  • Ami Ek Jajabar
    • Mukaam London
  • Sankaliyu
    • Digital Opinion
    • Digital Nireekshak
    • Digital Milap
    • Digital Vishwamanav
    • એક દીવાદાંડી
    • काव्यानंद
  • About us
    • Launch
    • Opinion Online Team
    • Contact Us

असुरक्षा का भाव चमका रहा है बाबाओं का धंधा

राम पुनियानी|Opinion - Opinion|19 July 2024

राम पुनियानी

उत्तरप्रदेश के हाथरस जिले में भगदड़ में कम से कम 121 लोग मारे गए. इनमें से अधिकांश निर्धन दलित परिवारों की महिलाएं थीं. भगदड़ भोले बाबा उर्फ़ नारायण साकार हरी के सत्संग में मची. भोले बाबा पहले पुलिस में नौकरी करता था. बताया जाता है कि उस पर बलात्कार का आरोप भी था. करीब 28 साल पहले उसने पुलिस से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली और बाबा बन गया. कुछ साल पहले उसने यह दावा किया कि वह कैंसर से मृत एक लड़की को फिर से जिंदा कर सकता है. जाहिर है कि ऐसा कुछ नहीं हो सका. बाद में बाबा के घर से लाश के सड़ने की बदबू आने पर पड़ोसियों ने पुलिस से शिकायत की. इस सबके बाद भी वह एक सफल बाबा बन गया, उसके अनुयायियों और आश्रमों की संख्या बढ़ने लगी और साथ ही उसकी संपत्ति भी.

हालिया घटना के बाद बाबा के कुछ चेले-चपाटों को पुलिस द्वारा आरोपी बनाया गया है. मगर बाबा का नाम एफआईआर में नहीं है. भगदड़ इसलिए मची क्योंकि यह प्रचार किया गया था कि जिस मिट्टी पर बाबा चलता है, वह बहुत से रोगों को ठीक कर सकती है. सत्संग ख़त्म होने के बाद बाबा जब वापस जा रहा था तब जिस मिट्टी पर उसके कदम पड़े थे, उसे उठाने के लिए भक्तगण लपके जिससे भगदड़ मच गयी और बड़ी संख्या में लोग अपनी जान से हाथ खो बैठे. यह बाबा कितना लोकप्रिय हैं यह इससे जाहिर है कि सत्संग में 80,000 लोगों के इकठ्ठा होने की अनुमति दी गयी थी मगर वहां करीब डेढ लाख लोग पहुँच गए.

भारत में बाबा कोई नई चीज़ नहीं हैं. और ऐसा भी नहीं है कि बाबा केवल भारत में पाए जाते हैं. हाँ यह ज़रूर है कि पिछले कुछ सालों से उनकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ी है. भारत में सैकड़ों बाबा हैं और वे देश के हर हिस्से में पाए जाते हैं. कुछ बाबाओं की ख्याति विशिष्ट क्षेत्रों में है. आसाराम बापू और गुरमीत राम रहीम इंसान जैसे कुछ बाबा बलात्कार और हत्या करने के कारण जेलों की हवा खा रहे हैं. एक अन्य सफल बाबा हैं बाबा रामदेव, जिन्हें आधुनिक चिकित्सा विज्ञान का मज़ाक उड़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जम कर फटकार लगाई थी. श्री श्री रविशंकर पर यमुना नदी को प्रदूषित करने का आरोप है. जग्गी वासुदेव के कई आश्रमों में आपराधिक गतिविधियाँ होने के चर्चा है. बाबा अलग-अलग प्रकार के हैं मगर कुछ बातें सभी बाबाओं में समान हैं. सभी बाबाओं के पास ढेर सारी संपत्ति और धन है, सभी बाबा अंधश्रद्धा को बढ़ावा देते हैं और सभी का आत्मविश्वास अचंभित करने वाला है.

यद्यपि इस बारे में कोई पक्की जानकारी तो उपलब्ध नहीं है मगर मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि बाबाओं की संख्या और उनके प्रभाव में पिछले कुछ दशकों में तेजी से वृद्धि हुई है. इस वृद्धि का धर्म की राजनीति के बढ़ते बोलबाले से अंतर्संबंध स्थापित करना भी आसान नहीं है. यह सही है कि दूसरे देशों में भी बाबाओं की तरह के लोग हैं. अमरीका में केरिसमेटिक ईसाई आन्दोलन है तो कुछ मुस्लिम देशों में भी चमत्कार करने वाले फ़क़ीर हैं. मगर भारत में बाबाओं का जितना प्रभाव है, उतना किसी और देश में नहीं है. सारे बाबा धर्म का चोला ओढ़े रहते हैं. वे संस्थागत हिन्दू धर्म के पुरोहित वर्ग से नहीं होते. उनमें से अधिकांश अपने बल पर सफलता हासिल करते हैं. वे लोगों का दिमाग पढने और अपने अनुयायियों की कमजोरियों का फायदा उठाने में सिद्धहस्त होते हैं.

मगर एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि लोग आखिर बाबाओं की ओर आकर्षित क्यों होते हैं? निसंदेह, बाबा अपनी मार्केटिंग बहुत बढ़िया ढंग से करते हैं मगर यह भी सही है कि उनके भक्तों की अपनी कमजोरियां होती हैं जिनके चलते वे इन धोखेबाजों के चंगुल में फँस जाते हैं. इनमें से कई ऐसे होते हैं जो गंभीर समस्याओं से जूझ रहे होते हैं. उनकी समस्यायों का कोई हल उनके पास नहीं होता. उन्हें दरकार होती है सांत्वना के कुछ शब्दों की, किसी ऐसे व्यक्ति की जो उन्हें यह भरोसा दिला दे कि बाबा की चरणरज माथे से लगाने से, उनके प्रति पूर्ण समर्पण से या उनके बताए उपाय करने से उसकी समस्या हल हो जाएगी. बाबाओं के आसपास जो भीड़ जुटती है, उनमें बहुसंख्या ऐसे लोगों की होती है जो असुरक्षित महसूस कर रहे होते हैं. राजनेताओं से सांठगाँठ भी उनकी सफलता में योगदान देती है. गुरमीत राम रहीम महीनों पर पैरोल पर रहता है, विशेषकर चुनावों के समय. हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर अपनी पूरी मंत्रीपरिषद के साथ गुरमीत का आशीर्वाद लेने पहुंचे थे.

परन्तु मुख्यतः अनुयायियों में असुरक्षा का भाव उन्हें बाबाओं की ओर आकर्षित करता है. जितनी ज्यादा असुरक्षा, बाबाओं के प्रति उतनी ज्यादा श्रद्धा. और जितनी ज्यादा श्रद्धा, विवेक और तार्किकता से उतनी ही दूरी. असुरक्षा का कारक कितना महत्वपूर्ण है यह हम इससे भी समझ सकते हैं कि जिन देशों में आर्थिक और सामाजिक असुरक्षा कम है, वहां धर्म का प्रभाव भी कम होता जा रहा है. वैश्विक शोध संस्थान पीईडब्ल्यू का निष्कर्ष है: “इस मामले में संयुक्त राज्य अमरीका अकेला नहीं है. पश्चिमी यूरोप के देशों के नागरिक सामान्यतः अमरीकियों से भी कम धार्मिक हैं क्योंकि वे उस राह पर अमरीका से कई दशक पहले चल पड़े थे. धर्म का घटता प्रभाव आर्थिक दृष्टि से उन्नत अन्य देशों जैसे ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में भी देखा जा सकता है.”

मिशिगन विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर पोलिटिकल स्टडीज के प्रोफेसर रोनाल्ड इंगोहार्ट अपनी पुस्तक ‘गिविंग अप ऑन गॉड’ (पृष्ठ 110-111) में लिखते हैं, “सन 2007 से लेकर 2019 तक जिन 49 देशों का हमनें अध्ययन किया, उनमें से 43 में उस अवधि में लोगों में धार्मिकता घटी है. धार्मिक आस्था में कमी केवल उच्च आय वाले देशों तक सीमित नहीं है. ऐसा पूरी दुनिया में हुआ है. ऐसे लोगों की संख्या बढती जा रही है जिन्हें नहीं लगता  कि उनके जीवन को अर्थपूर्ण बनाने और उन्हें सहारा और संबल देने के लिए धर्म ज़रूरी है. लम्बे समय से यह कहा जाता रहा है कि अमरीका इस बात का प्रमाण है कि आर्थिक रूप से उन्नत देश भी अत्यंत धार्मिक हो सकता है. मगर अन्य धनी देशों की तरह, अमरीका भी अब धर्म से दूर जा रहा है.”

बाबाओं के साम्राज्य से निपटना आसान नहीं है. हमारे संविधान के भाग चार के अनुच्छेद 51क (मौलिक कर्त्तव्य) में यह शामिल है कि “भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मानववाद, और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे.” बाबा और उनके संरक्षक इस प्रावधान का खुलेआम उल्लंघन करते हैं.

देश में कई ऐसे सामाजिक समूह हैं जो बाबाओं का पर्दाफाश कर उनका विरोध करते रहे हैं. इनमें हवा से राख पैदा करने और आग पर चलने जैसे ‘चमत्कारों’ की असलियत लोगों के सामने रखना शामिल हैं. महाराष्ट्र में अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति ऐसी ही संस्था है. उससे जुड़े डॉ नरेन्द्र दाभोलकर को सनातन संस्था की तरह के दकियानूसी समूहों के कार्यकर्ताओं ने क्रूरतापूर्वक मौत के घाट उतार दिया था. इसी तरह की ताकतों ने कामरेड गोविन्द पंसारे, गौरी लंकेश और प्रोफेसर कलबुर्गी की हत्या की. डॉ दाभोलकर की हत्या के बाद, महाराष्ट्र विधानसभा ने अंधश्रद्धा और चमत्कारिक इलाज के खिलाफ एक कानून पारित किया.

पूरे देश में ऐसे कानूनों की ज़रुरत है. हमें वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना होगा. साथ में हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि सभी नागरिकों को सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा हासिल हो. वर्तमान व्यवस्था, जिसमें अमीर और अमीर होते जा रहे हैं और गरीब और गरीब को हमें बदलना होगा. हमें महात्मा गाँधी के दिखाए रास्ते पर चलते हुए यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी नीतियां अंतिम पंक्ति के अंतिम व्यक्ति को ध्यान में रखकर बनाई जाएँ. तभी हम समाज में सुरक्षा का भाव स्थापित कर सकेंगे.

16 जुलाई 2024
(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया. लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)  

Loading

19 July 2024 Vipool Kalyani
← ભારતીય સૈનિકો શહીદ થવા માટે જ છે?
ગુજરાતમાં અર્વાચીનતાના સૂરજના છડીદાર : ફાર્બસ (13) →

Search by

Opinion

  • રૂપ, કુરૂપ
  • કમલા હેરિસ રાજનીતિ છોડે છે, જાહેરજીવન નહીં
  • શંકા
  • ગાઝા સંહાર : વિશ્વને તાકી રહેલી નૈતિક કટોકટી
  • સ્વામી : પિતૃસત્તાક સમાજમાં ભણેલી સ્ત્રીના પ્રેમ અને લગ્નના દ્વંદ્વની કહાની

Diaspora

  • ૧લી મે કામદાર દિન નિમિત્તે બ્રિટનની મજૂર ચળવળનું એક અવિસ્મરણીય નામ – જયા દેસાઈ
  • પ્રવાસમાં શું અનુભવ્યું?
  • એક બાળકની સંવેદના કેવું પરિણામ લાવે છે તેનું આ ઉદાહરણ છે !
  • ઓમાહા શહેર અનોખું છે અને તેના લોકો પણ !
  • ‘તીર પર કૈસે રુકૂં મૈં, આજ લહરોં મેં નિમંત્રણ !’

Gandhiana

  • સ્વરાજ પછી ગાંધીજીએ ઉપવાસ કેમ કરવા પડ્યા?
  • કચ્છમાં ગાંધીનું પુનરાગમન !
  • સ્વતંત્ર ભારતના સેનાની કોકિલાબહેન વ્યાસ
  • અગ્નિકુંડ અને તેમાં ઊગેલું ગુલાબ
  • ડૉ. સંઘમિત્રા ગાડેકર ઉર્ફે ઉમાદીદી – જ્વલંત કર્મશીલ અને હેતાળ મા

Poetry

  • બણગાં ફૂંકો ..
  • ગણપતિ બોલે છે …
  • એણે લખ્યું અને મેં બોલ્યું
  • આઝાદીનું ગીત 
  • પુસ્તકની મનોવ્યથા—

Samantar Gujarat

  • ખાખરેચી સત્યાગ્રહ : 1-8
  • મુસ્લિમો કે આદિવાસીઓના અલગ ચોકા બંધ કરો : સૌને માટે એક જ UCC જરૂરી
  • ભદ્રકાળી માતા કી જય!
  • ગુજરાતી અને ગુજરાતીઓ … 
  • છીછરાપણાનો આપણને રાજરોગ વળગ્યો છે … 

English Bazaar Patrika

  • Letters by Manubhai Pancholi (‘Darshak’)
  • Vimala Thakar : My memories of her grace and glory
  • Economic Condition of Religious Minorities: Quota or Affirmative Action
  • To whom does this land belong?
  • Attempts to Undermine Gandhi’s Contribution to Freedom Movement: Musings on Gandhi’s Martyrdom Day

Profile

  • સ્વતંત્ર ભારતના સેનાની કોકિલાબહેન વ્યાસ
  • જયંત વિષ્ણુ નારળીકરઃ­ એક શ્રદ્ધાંજલિ
  • સાહિત્ય અને સંગીતનો ‘સ’ ઘૂંટાવનાર ગુરુ: પિનુભાઈ 
  • સમાજસેવા માટે સમર્પિત : કૃષ્ણવદન જોષી
  • નારાયણ દેસાઈ : ગાંધીવિચારના કર્મશીલ-કેળવણીકાર-કલમવીર-કથાકાર

Archives

“Imitation is the sincerest form of flattery that mediocrity can pay to greatness.” – Oscar Wilde

Opinion Team would be indeed flattered and happy to know that you intend to use our content including images, audio and video assets.

Please feel free to use them, but kindly give credit to the Opinion Site or the original author as mentioned on the site.

  • Disclaimer
  • Contact Us
Copyright © Opinion Magazine. All Rights Reserved