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मिस मेयो : मिस्टर मेयो

कुमार प्रशांत|Opinion - Opinion|4 May 2024

कुमार प्रशांत

इतिहास भी कमाल के गोते लगाता है ! भला सोचिए, 2024 में वह 1927 की कहानी दोहरा रहा है. तब यानी 1927 में एक थीं कैथरीन मेयो और एक थे महात्मा गांधी. महात्मा गांधी कौन थे यह तो अधिकांशत: हम सब जानते ही हैं (मैं व्हाट्एप यूनिवर्सिटी के महान इतिहासकारों को भी इसमें शामिल कर रहा हूं !), लेकिन कैथरीन मेयो कौन थीं यह जानने की जरूरत अधिकांश पाठकों को पड़ेगी. तो बताता हूं कि वे एक अमरीकी, श्वेत चमड़ी की श्रेष्ठता के भाव से भरी, नकचढ़ी पत्रकारसरीखी कुछ थीं जिन्हें कुछ लोग तब उसी तरह इतिहासकार भी कहते थे जिस तरह अब कुछ लोग गृहमंत्री अमित शाह को दार्शनिक कहते हैं. 20 के दशक में मिस मायो भारत आई थीं. गांधीजी से भी मिली थीं, दूसरी हस्तियों से भी मिली थीं, रवींद्रनाथ ठाकुर से भी मिली थीं. गांधीजी के निर्देश में चल रहे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से असहमत, असंतुष्ट, नाराज मेयो मैडम ने एक किताब लिखी : ‘ मदर इंडिया !’ ना, ना, आप ऐसा मत मान बैठिएगा कि महबूब खान की प्रसिद्ध फिल्म ‘मदर इंडिया’ मेयो मैम की इस किताब से प्रेरित थी. मेयो मैम ‘मदर इंडिया’ में अपना अलग ही राग गाती हैं.

यह किताब भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के मूल्यों, उसकी दिशा, उसकी उपलब्धियों आदि की धज्जियां उड़ाती हुई यह साबित करती है कि यह भारतीय समाज कुरीतियों-अन्याय-अत्याचार तथा शोषण की गंदी व्यवस्था पर टिका एक ऐसा गर्हित समाज है जिसे गुलाम बना कर अंग्रेजों ने ( कहें : श्वेत चमड़ी वालों ने ! ) कुछ सभ्य, कुछ मानवीय बनाया है. मेयो मैम की किताब तब कई लोगों को नागवार गुजरी थी लेकिन वह किताब जल्दी ही ‘गुजर भी जाती’ यदि गांधीजी ने उसे पढ़ा न होता. बहुत कहने पर गांधीजी ने न केवल ‘मदर इंडिया’ पढ़ी बल्कि चौतरफा आग्रह के कारण, ‘ बहुत व्यस्तता’ में से समय निकाल कर उस पर एक टिप्पणी भी लिखी जो 15 सितंबर 1927 को ‘यंग इंडिया’ में प्रकाशित हुई.  महात्मा गांधी ने अपनी टिप्पणी का शीर्षक दिया : ‘ ड्रेन इंस्पेक्टर रिपोर्ट’ : नाली सफाई के जमादार की रिपोर्ट ! गरज यह कि जिसका धंधा ही गंदगी को उकेर-उकेर कर देखना है, वह गंदगी के अलावा देखेगा भी तो क्या और वर्णन भी करेगा तो गंदगी की ही करेगा. महात्मा गांधी की अपनी शैली में यह खासी कड़ी टिप्पणी थी. गांधीजी ने लिखा कि यह “ बड़ी चालाकी से लिखी सशक्त किताब है… जो किसी हद तक सत्य का बखान, असत्य के प्रचार के लिए करती है.”

अब न कैथरीन मेयो हैं, न गांधीजी हैं लेकिन गंदगी फैलाने का धंधा जोरों पर है. गंदगी को सहेजने तथा ‘ बड़ी चालाकी से सत्य का बखान इस तरह करना कि असत्य का प्रचार हो’ वाली संस्कृति जीवित भी है, जारी भी है. सो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस कला में महारत हासिल कर ली है. वे अब इस कला के ‘उस्ताद जमादार’ बन गए हैं. हम देखें तो प्रधानमंत्री मोदी का कुल इतिहास 2014 से शुरू होता है और कुर्सी तक पहुंच कर चुक जाता है. वे सत्ता की जिन दो कुर्सियों पर बैठे हैं – मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री – यदि वे कुर्सियां हटा दी जाएं तो उनके पास कुछ भी बचता नहीं है. कुर्सी के बिना वे उसी तरह अर्थहीन हो जाते हैं जैसे नालियों के बिना सफाई जमादार!

मोदी चुनाव के सन्निपात में इधर जब-जब मुंह खोल रहे हैं, इतिहास का मुंह खुला रह जाता है. वैसे भी प्रधानमंत्री झूठ व सच में फर्क करने जैसी नैतिकता में कभी पड़ते नहीं हैं. सत्ता की कुर्सी पर बैठ कर किसी झूठ को जोर-जोर से सौ बार बोलो तो वह लोगों के बीच किसी हद तक सच की तरह स्थापित हो जाता है, इसे मान कर अहर्निश कार्यरत रहते हैं प्रधानमंत्री. उन्होंने कहा कि कांग्रेस का चुनाव घोषणापत्र उन्हें मुस्लिम लीग के घोषणापत्र जैसा लगता है. कोई प्रमाण ? कोई साम्यता ? नहीं, यह सब बताना प्रधानमंत्री का काम थोड़े ही है ! उन्हें पता है कि उनकी बात को ‘गोदी मीडिया’ देश भर में पहुंचा देगा और जहां-जहां उनका कहा ‘मुस्लिम’ शब्द पहुंचेगा, सांप्रदायिकता के अनुकूल वातावरण बन ही जाएगा. उन्हें इस वातावरण से मतलब है क्योंकि इससे वोट की फसल अच्छी बनती व कटती है.

उन्होंने कहा कि कांग्रेस लोगों से घर छीन लेगी, भैंस छीन लेगी, धन छीन लेगी, मंगलसूत्र छीन लेगी और यह सारा मुसलमानों को दे देगी. कोई प्रमाण ? कोई संदर्भ ? नहीं, यह सब बताना प्रधानमंत्री का काम थोड़े ही है ! उन्होंने बस कह दिया, अब ‘ गोदी मीडिया’ अपना काम करेगा और वातावरण जहरीला बनता जाएगा. समाज जितना जहरीला बनता जाएगा, वोट की फसल उतनी जल्दी पकेगी. पकी फसल काटनेवाले योगियों की कमी थोड़े ही है प्रधानमंत्री के पास !

उन्होंने कह दिया कि ‘ पाकिस्तान युवराज को प्रधानमंत्री बनाने को बेकरार  है’, तो कह दिया. गोदी मीडिया के पंखों पर सवार हो कर बात सब दूर फैल गई. इसमें ‘पाकिस्तान’ और ‘युवराज’ दो ही शब्द हैं जिसका जहरीला असर प्रधानमंत्री को पैदा करना है. उन्हें लगता है कि देश आज भी इतना जाहिल है कि उनका मनचाहा हो जाएगा. सच क्या है ? सच इतना ही है कि पाकिस्तान के एक सांसद को मोदी से कहीं भला लगता है कि राहुल गांधी भारत के प्रधानमंत्री हों. किसी एक व्यक्ति को पूरे देश का प्रतिनिधि बता कर कुछ भी बयान दे देना, गांधी के शब्दों में ‘ड्रेन इंस्पेक्टर रिपोर्ट’ है.

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का संदर्भ दे कर प्रधानमंत्री ने कहा कि कांग्रेस कहती है कि देश के धन पर पहला हक मुसलमानों का है. कोई प्रमाण ? कोई संदर्भ ? तुरंत ही गंदी नाली में उतरे प्रधानमंत्री के सिपाही और  खोज लाए एक वीडियो. वीडियो चलाया गया तो उसमें मनमोहन सिंह कह रहे हैं कि देश के संसाधनों पर पहला हक उनका होना चाहिए जो कमजोर हैं, अल्पसंख्यक हैं. हमारे देश में मुसलमान भी अल्पसंख्यक की श्रेणी में आते हैं, तो उनका नाम भी लिया मनमोहन सिंह ने. यह कोई छुपी बात तो है नहीं कि महात्मा गांधी के नेतृत्व में जिस कांग्रेस का जन्म हुआ वह अंतिम आदमी की बात करती थी तथा यह भी मानती थी कि वह अंतिम आदमी हमारे विकास की कसौटी भी है और कारण भी. धर्म के आधार पर इनमें फर्क करना कांग्रेस की नीति में नहीं है. व्यवहार में राजनीति बहुत कुछ ऐसा कराती है जैसा इन दिनों मोदी-कुनबा कर रहा है, तो जितनी छूट इन्हें है उतनी छूट मनमोहन सिंह को क्यों नहीं दी जानी चाहिए ? कांग्रेस और मनमोहन सिंह सांप्रदायिकता का फायदा उठाते होंगे भले लेकिन सांप्रदायिकता उनकी राजनीति का आधार कभी नहीं रही है. हिंदू महासभा से ले कर भारतीय जनता पार्टी तक अपने हर अवतार में नरेंद्र मोदियों ने सांप्रदायिकता को ही अपनी राजनीति का आधार बनाया है. इन दोनों में बहुत बड़ा गुणात्मक फर्क है.

मोदी के छुटभैय्यों में से एक राजनाथ सिंह जब नाली में उतरे तो यह गंदगी समेट लाए कि महात्मा गांधी कांग्रेस को समाप्त करना चाहते थे लेकिन नेहरू एंड कंपनी ने यह होने नहीं दिया. यही महाशय थे जिन्होंने नाली छान कर यह गंदगी समेटी थी कि सावरकर ने महात्मा गांधी के कहने से अंग्रेजों को माफीनामा लिखा था. वह झूठ आज तक उनका मुंह काला करता है, तो यह नया सत्य इन्हें कहां ला पटकेगा ! महात्मा गांधी की जिस दिन संघ-परिवार ने हत्या की, उससे पहले की रात गांधीजी ने अपनी जिंदगी का आखिरी दस्तावेज लिखा था. उसे पढ़ने व समझने की कसरत भले न करें राजनाथ सिंह लेकिन इतना तो जानें कि उस दस्तावेज में गांधीजी ने लिखा था कि आजादी मिलने के साथ ही कांग्रेस पार्टी का काम पूरा हो गया. अब इसे विसर्जित कर देना चाहिए. कांग्रेस पार्टी के जो लोग सत्ता की राजनीति में काम करना चाहते हैं उन्हें अपनी नई पार्टी बनानी चाहिए. लेकिन ईमानदारी से इतिहास का ककहरा भी जिसने पढ़ा होगा उसे इसी के साथ एक दूसरा दस्तावेज भी मिलेगा जिसमें आजादी के बाद गांधी जवाहरलाल से पूछते हैं कि तुम अब कांग्रेस की क्या भूमिका देखते हो; और जवाहरलाल कहते हैं कि उन्हें अब कांग्रेस की कोई खास भूमिका दिखाई नहीं देती है, तो गांधी कहते हैं कि नहीं, कांग्रेस कभी खत्म नहीं होगी, उसे कभी खत्म नहीं होना चाहिए क्योंकि वह जिन मूल्यों के लिए काम करती रही है, वे मूल्य अक्षुण्ण हैं. राजनीति के जोकरों के लिए यह बारीकी समझ पाना संभव नहीं है कि गांधीजी कांग्रेस संगठन व कांग्रेस मूल्य में फर्क करते हुए जवाहरलाल को सावधान करते हैं. इसलिए कांग्रेस जिन मूल्यों के लिए बनी व लड़ी थी, उन मूल्यों को खत्म करने में लगी संघी धारा को कोई नैतिक हक नहीं है कि वह महात्मा गांधी की उन बातों का संबंध आज से जोड़े. और इतिहास के पन्ने ही पलटने हों तो राजनाथ सिंहों को वे सारे पन्ने भी देखने चाहिए जिनमें गांधीजी ने हिंदू महासभा-राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ जैसे सांप्रदायिकता में तैरने वाले संगठनों के लिए कठोरतम वर्जनाएं की हैं.

सच और झूठ में क्या फर्क है ? बकौल कृष्णबिहारी ‘नूर’ :

सच बढ़े या घटे तो सच ना रहे / झूठ की कोई इंतहा ही नहीं. जैसे यह शेर भारतीय जनता पार्टी के लिए ही लिखा गया है.

(03.05.2024)   
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4 May 2024 Vipool Kalyani
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