Opinion Magazine
Number of visits: 9446978
  •  Home
  • Opinion
    • Opinion
    • Literature
    • Short Stories
    • Photo Stories
    • Cartoon
    • Interview
    • User Feedback
  • English Bazaar Patrika
    • Features
    • OPED
    • Sketches
  • Diaspora
    • Culture
    • Language
    • Literature
    • History
    • Features
    • Reviews
  • Gandhiana
  • Poetry
  • Profile
  • Samantar
    • Samantar Gujarat
    • History
  • Ami Ek Jajabar
    • Mukaam London
  • Sankaliyu
    • Digital Opinion
    • Digital Nireekshak
    • Digital Milap
    • Digital Vishwamanav
    • એક દીવાદાંડી
    • काव्यानंद
  • About us
    • Launch
    • Opinion Online Team
    • Contact Us

बहुसंख्यकवादी राष्ट्रवादः वैज्ञानिक समझ का नकार

राम पुनियानी|Opinion - Opinion|8 March 2024

राम पुनियानी

हिन्दू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी के पिछले एक दशक से चले आ रहे शासन के दौरान हमारे देश में शिक्षा के क्षेत्र में ऐसे परिवर्तन किए गए हैं जो आस्था पर अधिक आधारित हैं और तर्क पर कम। ये परिवर्तन ऐसे हैं जो अतीत का महिमामंडन करते हैं और वैज्ञानिक सोच का नकार। तथ्य यह है कि भारत में प्राचीन काल से ही तार्किकता को महत्व दिया जाता रहा है। चार्वाक तार्किकता पर आधारित सोच के बड़े पैरोकारों में से एक थे। चरक और आर्यभट्ट ने चिकित्सा विज्ञान और खगोल शास्त्र के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

मगर आज जो दावे किए जा रहे हैं उनका सच्चाई से कोई संबंध नजर नहीं आता। जैसे हमें बताया जा रहा है कि प्राचीन भारत में प्लास्टिक सर्जरी थी और इसी का उपयोग कर मनुष्य के धड़ पर हाथी का सिर लगाकर भगवान गणेश का सृजन किया गया था। इसी तरह हमें बताया जाता है कि कर्ण के कान से पैदा होने की कथा से यह स्पष्ट है कि प्राचीन भारत में जेनेटिक साईन्स भी थी। यह भी बताया जाता है कि हमारे प्राचीन ऋषि-मुनि हवा में उड़ सकते थे और यह भी कि प्राचीन काल में पुष्पक विमान थे। कहा तो यहाँ तक जाता है कि प्राचीन भारतीय दूसरे ग्रहों पर भी जाते थे। धर्मग्रन्थों में जो कुछ कहा गया है उसे सही और सच सिद्ध करने के प्रयास हो रहे हैं।

ऐसी चीजें स्कूलों में तो सिखाई ही जा रही हैं उन पर अनुसंधान के लिए बजट भी आवंटित किया जा रहा है। यह बजट विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अनुसंधान के लिए निर्धारित धनराशि में से उपलब्ध करवाया जा रहा है। आईआईटी दिल्ली के समन्वय में पंचगव्य पर अनुसंधान हो रहा है। पंचगव्य, गाय के पाँच उत्पादों का मिश्रण होता है-दूध, दही, घी, गौमूत्र एवं गोबर। ऐसा कहा जाता है कि पंचगव्य से कई रोगों का इलाज हो सकता है। गौमूत्र को भी दवा बताया जा रहा है। भाजपा सरकार आने के पहले भी पार्टी के पितृसंगठन आरएसएस ने आस्था पर आधारित ज्ञान के प्रसार के लिए कई संगठन गठित किए थे।

दीनानाथ बत्रा नाम के एक सज्जन आरएसएस के दो अनुषांगिक संगठनों, शिक्षा बचाओ अभियान समिति एवं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के कई दशकों से अध्यक्ष हैं। उन्होंने 9 किताबें लिखी हैं। इन सभी का गुजराती में अनुवाद कर उन्हें गुजरात के 42,000 स्कूलों में पढ़ाया जा रहा है। इन पुस्तकों को पढ़कर हम यह जान सकते हैं कि बच्चों को इन दिनों क्या सिखाया जा रहा है। इनमें से एक पुस्तक जिसका शीर्षक है ‘तेजोमय भारत’ में एक कोई डॉक्टर बालकृष्ण गणपत मातापुरकर के अनुसंधान की कहानी सुनाई गई है। हमें बताया गया है कि मातापुरकर जी महाभारत में कही गई बातों पर अनुसंधान करते हैं। उनके अनुसार गांधारी के गर्भ से माँस का एक बड़ा लोथड़ा निकला। इस पर ऋषि द्वापायन व्यास को बुलाया गया। उन्होंने माँस के इस कड़े लोथड़े का अवलोकन किया फिर उन्होंने उसे ठंडे पानी में कुछ विशिष्ट दवाओं के साथ रख दिया। कुछ समय बाद उन्होंने इस लोथड़े के 100 टुकड़े किए और उन्हें दो साल की अवधि के लिए घी से भरे हुए 100 मटकों में रख दिया। दो साल बाद इन टुकड़ों से 100 कौरवों का जन्म हुआ। पुस्तक हमें बताती है कि इस विवरण को पढ़ने के बाद मातापुरकर को यह समझ में आया कि स्टेम सेल टेक्नोलॉजी महाभारत काल में मौजूद थी और यह हमारी प्राचीन विरासत का हिस्सा है।

उनके अनुसार, भारतीय ऋषि अपनी योग विद्या का इस्तेमाल कर दिव्य दृष्टि प्राप्त कर लेते थे और यही आज का टेलीविजन है। महाभारत में संजय, हस्तिनापुर के एक महल में बैठकर अपनी दिव्य दृष्टि से कुरूक्षेत्र में चल रहे महाभारत के युद्ध का आंखो-देखा हाल धृतराष्ट्र को सुनाता था, जो कि अंधे थे (पृष्ठ 64)। पुस्तक हमें यह भी बताती है कि आज जिसे हम मोटर कार कहते हैं वह वैदिक काल में मौजूद थी और उसे अनश्व रथ (अर्थात बिना अश्व वाला रथ) या यंत्र रथ कहा जाता था। ऋग्वेद में इसका वृतांत दिया गया है (पृष्ठ 60)।

आरएसएस ने एक परामर्शदात्री संस्था का गठन भी किया है जिसे भारतीय शिक्षा नीति आयोग कहा जाता है। इस आयोग की नीतियाँ ही मोदी सरकार के भारतीय शिक्षा व्यवस्था में सुधार के प्रयासों का आधार हैं। शिक्षा नीति आयोग, भारत की शिक्षा व्यवस्था का ‘भारतीयकरण’ करना चाहता है।

अब तो भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (आईसीएचआर), राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान व प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) आदि के मुखिया ऐसे लोग हैं जिनका इन संस्थाओं के कार्यक्षेत्र से कोई लेना देना नहीं है। उन्हें ये पद केवल इसलिए दिए गए हैं क्योंकि वे सत्ताधारी दल की विचारधारा में यकीन रखते हैं।

वाई. सुदर्शन नाम के एक ‘विद्वान’ को भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद का मुखिया बनाया गया था। वे यह साबित करने पर आमादा थे कि हमारे महाकाव्य रामायण और महाभारत ऐतिहासिक घटनाक्रम का वर्णन करते हैं। मतलब यह है कि जो महाभारत और रामायण में लिखा गया है वह सचमुच हुआ था। इस सरकार में तार्किक सोच और वैज्ञानिक पद्धति के लिए कोई जगह नहीं है। सरकार बाबा रामदेव को जमकर बढ़ावा दे रही है। बाबा रामदेव की कंपनी द्वारा बनाई गई एक दवा कोरोनिल को कोविड-19 का इलाज बताया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने अभी हाल में रामदेव को चेतावनी दी है कि वे अपने विज्ञापनों में हवाई दावे न करें और दूसरी चिकित्सा पद्धतियों को कटघरे में खड़ा न करें।

पिछले कुछ सालों से भारतीय विज्ञान कांग्रेस प्रकाशन के लिए ऐसे शोध प्रबंध स्वीकार कर रही है जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है और जो केवल पौराणिक कथाओं पर आधारित हैं। इस स्थिति से व्यथित होकर कुछ प्रमुख वैज्ञानिकों ने एक साथ मिलकर एक संयुक्त बयान जारी किया है, जिसमें सरकार से यह अनुरोध किया गया है कि वह वैज्ञानिक सोच और वैज्ञानिक पद्धतियों को कमज़ोर करने से बाज़ आये। वैज्ञानिकों का कहना है कि ‘‘सरकार का यह दृष्टिकोण उसके द्वारा अवैज्ञानिक एवं अपुष्ट दावों को बढ़ावा देने, भारत के प्राचीन ज्ञान को बढ़ाचढ़ाकर बताने और कोविड-19 महामारी के दौरान किए गए कुछ निर्णयों से स्पष्ट है।’’

वक्तव्य में इस बात पर जोर दिया गया है कि वैज्ञानिक, शिक्षाविद और नीति निर्माता एक साथ मिलकर विज्ञान के प्रति निष्ठा में क्षरण को रोकने व देश में वैज्ञानिक सोच और तार्किक व साक्ष्य-आधारित आख्यान को बढ़ावा देने के लिए कार्य करें।

हमारा संविधान राज्य से यह अपेक्षा करता है कि वह वैज्ञानिक समझ को बढ़ावा दे। मगर वर्तमान सरकार की नीतियाँ, तार्किकता पर आधारित नहीं हैं। यह बात न केवल विज्ञान और वैज्ञानिक अनुसंधान वरन् शिक्षा और सामाजिक क्षेत्र के बारे में भी सही है। नई शिक्षा नीति 2020 में ‘भारतीय ज्ञान प्रणालियों’ पर ज़ोर दिया गया है। इसका मतलब केवल यह है कि सरकार भौतिक व सामाजिक विज्ञानों में आस्था पर आधारित ज्ञान को बढ़ावा देगी।

वे लोग जो समाजिक समानता चाहते हैं और सामाजिक परिवर्तन के हामी हैं, हमेशा से तार्किक व वैज्ञानिक सोच के पैरोकार रहे हैं। गौतम बुद्ध, भगत सिंह, अम्बेडकर और नेहरू इसके उदाहरण हैं। भारत का इतिहास गवाह है कि जो लोग सामाजिक रिश्तों में यथास्थिति बनाये रखना चाहते थे, जो लोग असमानता को बनाए रखना चाहते थे, वे आस्था पर आधारित ज्ञान को बढ़ावा देते थे, पौराणिक कथाओं को धु्रवसत्य बताते थे और आस्था पर आधारित ज्ञान को समाज पर थोपते थे। साम्प्रदायिक और कट्टरवादी तत्व टेक्नोलॉजी को पसंद नहीं करते। वे वैज्ञानिक और तार्किक सोच के भी विरोधी होते हैं। हमारा संविधान औपनिवेशिकसत्ता के विरूद्ध संघर्ष से उभरा था और इसके निर्माता समाज में बदलाव के हामी थे। इसलिए संविधान में वैज्ञानिक समझ को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी सरकार पर डाली गई है। हमारी वर्तमान सरकार, धार्मिक, जातिगत और लैंगिक समानता की विरोधी है। यही कारण है कि वह संविधान की मूल आत्मा के खिलाफ है।

अनेक प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों ने जो बयान जारी किया है वह स्वागत योग्य है। भारत के लिए यह जरूरी है कि वह विवेक, तर्क और वैज्ञानिक समझ को अपनी नीतियों का आधार बनाये।

06/03/2024
(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया; लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)  

Loading

8 March 2024 Vipool Kalyani
← સ્ત્રી શક્તિ છે, તો …
ગઝલ →

Search by

Opinion

  • સ્વામી : પિતૃસત્તાક સમાજમાં ભણેલી સ્ત્રીના પ્રેમ અને લગ્નના દ્વંદ્વની કહાની
  • મહિલાઓ હવે રાતપાળીમાં કામ કરી શકશે, પણ કરવા જેવું ખરું?
  • લોકો પોલીસ પર ગુસ્સો કેમ કાઢે છે?
  • એક આરોપી, એક બંધ રૂમ, 12 જ્યુરી અને ‘એક રૂકા હુઆ ફેંસલા’ 
  • શાસકોની હિંસા જુઓ, માત્ર લોકોની નહીં

Diaspora

  • ૧લી મે કામદાર દિન નિમિત્તે બ્રિટનની મજૂર ચળવળનું એક અવિસ્મરણીય નામ – જયા દેસાઈ
  • પ્રવાસમાં શું અનુભવ્યું?
  • એક બાળકની સંવેદના કેવું પરિણામ લાવે છે તેનું આ ઉદાહરણ છે !
  • ઓમાહા શહેર અનોખું છે અને તેના લોકો પણ !
  • ‘તીર પર કૈસે રુકૂં મૈં, આજ લહરોં મેં નિમંત્રણ !’

Gandhiana

  • સ્વરાજ પછી ગાંધીજીએ ઉપવાસ કેમ કરવા પડ્યા?
  • કચ્છમાં ગાંધીનું પુનરાગમન !
  • સ્વતંત્ર ભારતના સેનાની કોકિલાબહેન વ્યાસ
  • અગ્નિકુંડ અને તેમાં ઊગેલું ગુલાબ
  • ડૉ. સંઘમિત્રા ગાડેકર ઉર્ફે ઉમાદીદી – જ્વલંત કર્મશીલ અને હેતાળ મા

Poetry

  • બણગાં ફૂંકો ..
  • ગણપતિ બોલે છે …
  • એણે લખ્યું અને મેં બોલ્યું
  • આઝાદીનું ગીત 
  • પુસ્તકની મનોવ્યથા—

Samantar Gujarat

  • ખાખરેચી સત્યાગ્રહ : 1-8
  • મુસ્લિમો કે આદિવાસીઓના અલગ ચોકા બંધ કરો : સૌને માટે એક જ UCC જરૂરી
  • ભદ્રકાળી માતા કી જય!
  • ગુજરાતી અને ગુજરાતીઓ … 
  • છીછરાપણાનો આપણને રાજરોગ વળગ્યો છે … 

English Bazaar Patrika

  • Letters by Manubhai Pancholi (‘Darshak’)
  • Vimala Thakar : My memories of her grace and glory
  • Economic Condition of Religious Minorities: Quota or Affirmative Action
  • To whom does this land belong?
  • Attempts to Undermine Gandhi’s Contribution to Freedom Movement: Musings on Gandhi’s Martyrdom Day

Profile

  • સ્વતંત્ર ભારતના સેનાની કોકિલાબહેન વ્યાસ
  • જયંત વિષ્ણુ નારળીકરઃ­ એક શ્રદ્ધાંજલિ
  • સાહિત્ય અને સંગીતનો ‘સ’ ઘૂંટાવનાર ગુરુ: પિનુભાઈ 
  • સમાજસેવા માટે સમર્પિત : કૃષ્ણવદન જોષી
  • નારાયણ દેસાઈ : ગાંધીવિચારના કર્મશીલ-કેળવણીકાર-કલમવીર-કથાકાર

Archives

“Imitation is the sincerest form of flattery that mediocrity can pay to greatness.” – Oscar Wilde

Opinion Team would be indeed flattered and happy to know that you intend to use our content including images, audio and video assets.

Please feel free to use them, but kindly give credit to the Opinion Site or the original author as mentioned on the site.

  • Disclaimer
  • Contact Us
Copyright © Opinion Magazine. All Rights Reserved