Opinion Magazine
Number of visits: 9448697
  •  Home
  • Opinion
    • Opinion
    • Literature
    • Short Stories
    • Photo Stories
    • Cartoon
    • Interview
    • User Feedback
  • English Bazaar Patrika
    • Features
    • OPED
    • Sketches
  • Diaspora
    • Culture
    • Language
    • Literature
    • History
    • Features
    • Reviews
  • Gandhiana
  • Poetry
  • Profile
  • Samantar
    • Samantar Gujarat
    • History
  • Ami Ek Jajabar
    • Mukaam London
  • Sankaliyu
    • Digital Opinion
    • Digital Nireekshak
    • Digital Milap
    • Digital Vishwamanav
    • એક દીવાદાંડી
    • काव्यानंद
  • About us
    • Launch
    • Opinion Online Team
    • Contact Us

एक योद्धा संत का अंत

कुमार प्रशांत|Opinion - Opinion|27 December 2021

ऑज के इस बौने दौर में डेसमंड टूटू जैसे किसी आदमकद का जाना बहुत कुछ वैसे ही सालाता है जैसे तेज आंधी में उस आखिरी वृक्ष का उखड़ जाना जिससे अपनी झोंपड़ी पर साया हुआ करता था. जब तेज धूप में अट्टहास करती प्रेत छायाओं की चीख-पुकार की सर्वत्र गूंजती हो तब वे सब लोग खास अपने लगने लगते हैं जो संसार के किसी भी कोने में हों लेकिन मनुष्यता का मंदिर गढ़ने में लगे थे, लगे रहे और मंदिर गढ़ते-गढ़ते ही विदा हो गए. यह वह मंदिर है जो मन-मंदिर में अवस्थित होता है; और एक बार पैठ गया तो फिर आपको चैन नहीं लेने देता है. गांधी ने अपने हिंद-स्वराज्य में लिखा ही है न : “ एक बार इस सत्य की प्रतीति हो जाए तो  इसे दूसरों तक पहुंचाए बिना हम रह ही कैसे सकते हैं !”

डेसमंड टूटू एंगलिकन ईसाई पादरी थे लेकिन ईसाइयों की तमाम दुनिया में उन जैसा पादरी गिनती का भी नहीं है;  डेसमंड टूटू अश्वेत थे लेकिन उन जैसा शुभ्र व्यक्तित्व खोजे भी न मिलेगा; डेसमंड टूटू शांतिवादी थे लेकिन उन जैसा योद्धा उंगलियों पर गिना जा सकता है. थे तो वे दक्षिण अफ्रीका जैसे सुदूर देश के लेकिन हमें वे बेहद अपने लगते थे क्योंकि गांधी के भारत से और भारत के गांधी से उनका गर्भ-नाल वैसे ही जुड़ा था जैसे उनके समकालीन साथी व सिपाही नेल्सन मंडेला का. इस गांधी का यह कमाल ही है कि उसके अपने रक्त-परिवार का हमें पता हो कि न हो, उसका तत्व-परिवार सारे संसार में इस कदर फैला है कि वह हमेशा जीवंत चर्चा के बीच जिंदा रहता है. गांधी के हत्यारों की यही तो परेशानी है कि लंबे षड्यंत्र और कई असफल कोशिशों के बाद के, 30 जनवरी 1948 को जब वे उसे 3 गोलियों से मारने में सफल हुए तो पता चला कि यह आदमी उस रोज मरा ही नहीं. उस रोज हुआ इतना ही कि यह आदमी भारत की परिधि पार कर, सारे संसार में फैल गया. डेसमंड टूटू संसार भर में फैले इसी गांधी-परिवार के अनमोल सदस्यों में एक थे. खास बात यह भी थी कि वे उसी दक्षिण अफ्रीका के थे जिसने बैरिस्टर मोहन दास करमचंद गांधी को सत्याग्रही गांधी बना कर संसार को लौटाया था. गांधी की यह विरासत मंडेला व टूटू दोनों ने जिस तरह निभाई उसे देख कर महात्मा होते तो निहाल ही होते.

श्वेत आधिपत्य से छुटकारा पाने की दक्षिण अफ्रीका की लंबी खूनी लड़ाई के अधिकांश सिपाही या तो मौत के घाट उतार दिए गए या देश-बदर कर दिए गए या जेलों में सदा के लिए दफ्न कर दिए गए.  डेसमंड टूटू इन सभी के साक्षी भी रहे और सहभागी भी फिर भी वे इन सबसे बच सके तो शायद इसलिए कि उन पर चर्च का साया था. 1960 में वे पादरी बने और चर्च के धार्मिक संगठन की सीढ़ियां चढ़ते हुए 1985 में जोहानिसबर्ग के बिशप बने. अगले ही वर्ष वे केप टाउन के पहले अश्वेत आर्चबिशप बने. दबा-ढका यह विवाद तो चल ही रहा था कि डेसमंड टूटू समाज व राजनीति के संदर्भ में जो कर व कह रहे हैं क्या वह चर्च की मान्य भूमिका से मेल खाता है ? सत्ता व धर्म का जैसा गठबंधन आज है उसमें ऐसे सवाल केवल सवाल नहीं रह जाते हैं बल्कि छिपी हुई धमकी में बदल जाते हैं. डेसमंड टूटू ऐसे सवाल सुन रहे थे और उस धमकी को पहचान रहे थे. इसलिए आर्चबिशप ने अपनी भूमिका स्पष्ट कर दी : “मैं जो कर रहा हूं और जो कह रहा हूं वह आर्चबिशप की शुद्ध धार्मिक भूमिका है. धर्म यदि अन्याय व दमन के खिलाफ नहीं बोलेगा तो धर्म ही नहीं रह जाएगा.” वेटिकन के लिए भी आर्चबिशप की इस भूमिका में हस्तक्षेप करना मुश्किल हो गया.

रंगभेदी शासन के तमाम जुल्मों की उन्होंने मुखालफत की. वे नहीं होते तो उन जुल्मों का हमें पता भी नहीं चलता. वे चर्च से जुड़े संभवत: पहले व्यक्ति थे जिन्होंने दक्षिण अफ्रीका की चुनी हुई श्वेत सरकार की तुलना जर्मनी के नाजियों से की और संसार की तमाम श्वेत सरकारों को लज्जित कर, लाचार किया कि वे दक्षिण अफ्रीका की रंगभेदी सरकार पर आर्थिक प्रतिबंध कड़ा भी करें तथा सच्चा भी करें. हम डेसमंड टूटू को पढ़ें या सुनें तो हम पाएंगे कि वे उग्रता से नहीं, दृढ़ता से अपनी बात रखते थे. उनकी मजाकिया शैली के पीछे एक मजबूत नैतिक मन था जिसे खुद पर पूरा भरोसा था. इसलिए सत्ता जानती थी कि उनकी बातों को काटना संभव नहीं है; कहने वाले को झुकाना संभव नहीं है.

नैतिक शक्ति कितनी धारदार हो सकती है, इसे पहचानने में हम गांधी के संदर्भ में अक्सर विफल हो जाते हैं क्योंकि उसे पहचानने, सुनने व समझने के लिए भी किसी दर्जे के नैतिक साहस की जरूरत होती है. डेसमंड टूटू में यह साहस था. वे श्वेत सरकार के क्षद्म का पर्दाफाश करने में लगे रहे तो वे ही आंदोलकारियों की शारीरिक देखभाल व आर्थिक मदद आदि में भी सक्रिय रहे.

नेल्सन मंडेला ने जब दक्षिण अफ्रीका की बागडोर संभाली तो रंगभेद की मानसिकता बदलने का वह अद्भुत प्रयोग किया जिसमें पराजित श्वेत राष्ट्रपति दि’क्लार्क उनके उप-राष्ट्रपति बन कर साथ आए. फिर ‘ट्रुथ एंड रिकौंसिलिएशन कमिटी’ का गठन किया गया जिसके पीछे मूल भावना यह थी कि अत्याचार व अनाचार श्वेत-अश्वेत नहीं होता है. सभी अपनी गलतियों को पहचानें, कबूल करें, डंड भुगतें तथा साथ चलने का रास्ता खोजें. सामाजिक जीवन का यह अपूर्व प्रयोग था. अश्वेत-श्वेत मंडेला-क्लार्क की जोड़ी ने डेसमंड टूटू को इस अनोखे प्रयोग का अध्यक्ष मनोनीत किया. दोनों ने पहचाना कि देश में उनके अलावा कोई है नहीं कि जो उद्विग्नता से ऊपर उठ कर, समत्व की भूमिका से हर मामले पर विचार कर सके.

सत्य के प्रयोग हमेशा ही दोधारी तलवार होते हैं. ऐसा ही इस कमीशन के साथ भी हुआ. सत्य के निशाने पर मंडेला की सत्ता भी आई. अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस की आलोचना भी डेसमंड टूटू ने उसकी साहस व बेबाकी से की जो हमेशा उनकी पहचान रही थी. सत्ता व सत्य का नाता कितना सतही होता है, यह आजादी के बाद गांधी के संदर्भ में हमने देखा ही था; अब डेसमंड टूटू ने भी वही देखा. लेकिन कमाल यह हुआ कि टूटू इस अनुभव के बाद भी न कटु हुए, न निराश ! बिशप के अपने चोगे में लिपटे टूटू खिलखिलाहट के साथ अपनी बात कहते ही रहे.

अपने परम मित्र दलाई लामा के दक्षिण अफ्रीका आने के सवाल पर सत्ता से उनकी तनातनी बहुत तीखी हुई. सत्ता नहीं चाहती थी कि दलाई लामा वहां आएं; टूटू किसी भी हाल में ‘ संसार के लिए आशा के इस सितारे’ को अपने देश में लाना चाहते थे. आखिरी सामना राष्ट्रीय पुलिस प्रमुख के दफ्तर पर हुआ जिसने बड़ी हिकारत से उनसे कहा :  “मुंह बंद करो और अपने घर बैठो !” 

डेसमंड टूटू ने शांत मन से, संयत स्वर में कहा : “ लेकिन मैं तुमको बता दूं कि वे बनावटी क्राइस्ट नहीं हैं !”

डेसमंड टूटू ने अंतिम सांस तक न संयम छोड़ा, न सत्य ! गांधी की तरह वे भी यह कह गए कि यह मेरे सपनों का दक्षिण अफ्रीका नहीं है.

भले डेसमंड टूटू का सपना पूरा नहीं हुआ लेकिन वे हमारे लिए बहुत सारे सपने छोड़ गए हैं जिन्हें पूरा कर हम उन्हें भी और खुद को भी परिपूर्ण  बना सकते हैं.

(27.12.2021)

मेरे ताजा लेखों के लिए मेरा ब्लॉग पढ़ें 

https://kumarprashantg.blogspot.com    

Loading

27 December 2021 admin
← આ મુશ્કેલ સમયમાં (66)
શું અંધશ્રદ્ધા આપણો સામાજિક અને સાંસ્કૃતિક વારસો છે ? →

Search by

Opinion

  • રૂપ, કુરૂપ
  • કમલા હેરિસ રાજનીતિ છોડે છે, જાહેરજીવન નહીં
  • શંકા
  • ગાઝા સંહાર : વિશ્વને તાકી રહેલી નૈતિક કટોકટી
  • સ્વામી : પિતૃસત્તાક સમાજમાં ભણેલી સ્ત્રીના પ્રેમ અને લગ્નના દ્વંદ્વની કહાની

Diaspora

  • ૧લી મે કામદાર દિન નિમિત્તે બ્રિટનની મજૂર ચળવળનું એક અવિસ્મરણીય નામ – જયા દેસાઈ
  • પ્રવાસમાં શું અનુભવ્યું?
  • એક બાળકની સંવેદના કેવું પરિણામ લાવે છે તેનું આ ઉદાહરણ છે !
  • ઓમાહા શહેર અનોખું છે અને તેના લોકો પણ !
  • ‘તીર પર કૈસે રુકૂં મૈં, આજ લહરોં મેં નિમંત્રણ !’

Gandhiana

  • સ્વરાજ પછી ગાંધીજીએ ઉપવાસ કેમ કરવા પડ્યા?
  • કચ્છમાં ગાંધીનું પુનરાગમન !
  • સ્વતંત્ર ભારતના સેનાની કોકિલાબહેન વ્યાસ
  • અગ્નિકુંડ અને તેમાં ઊગેલું ગુલાબ
  • ડૉ. સંઘમિત્રા ગાડેકર ઉર્ફે ઉમાદીદી – જ્વલંત કર્મશીલ અને હેતાળ મા

Poetry

  • બણગાં ફૂંકો ..
  • ગણપતિ બોલે છે …
  • એણે લખ્યું અને મેં બોલ્યું
  • આઝાદીનું ગીત 
  • પુસ્તકની મનોવ્યથા—

Samantar Gujarat

  • ખાખરેચી સત્યાગ્રહ : 1-8
  • મુસ્લિમો કે આદિવાસીઓના અલગ ચોકા બંધ કરો : સૌને માટે એક જ UCC જરૂરી
  • ભદ્રકાળી માતા કી જય!
  • ગુજરાતી અને ગુજરાતીઓ … 
  • છીછરાપણાનો આપણને રાજરોગ વળગ્યો છે … 

English Bazaar Patrika

  • Letters by Manubhai Pancholi (‘Darshak’)
  • Vimala Thakar : My memories of her grace and glory
  • Economic Condition of Religious Minorities: Quota or Affirmative Action
  • To whom does this land belong?
  • Attempts to Undermine Gandhi’s Contribution to Freedom Movement: Musings on Gandhi’s Martyrdom Day

Profile

  • સ્વતંત્ર ભારતના સેનાની કોકિલાબહેન વ્યાસ
  • જયંત વિષ્ણુ નારળીકરઃ­ એક શ્રદ્ધાંજલિ
  • સાહિત્ય અને સંગીતનો ‘સ’ ઘૂંટાવનાર ગુરુ: પિનુભાઈ 
  • સમાજસેવા માટે સમર્પિત : કૃષ્ણવદન જોષી
  • નારાયણ દેસાઈ : ગાંધીવિચારના કર્મશીલ-કેળવણીકાર-કલમવીર-કથાકાર

Archives

“Imitation is the sincerest form of flattery that mediocrity can pay to greatness.” – Oscar Wilde

Opinion Team would be indeed flattered and happy to know that you intend to use our content including images, audio and video assets.

Please feel free to use them, but kindly give credit to the Opinion Site or the original author as mentioned on the site.

  • Disclaimer
  • Contact Us
Copyright © Opinion Magazine. All Rights Reserved