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नरेंद्र मोदी और मोरारी बापू की ‘बाबा’ वाली दोस्ती

रजनीश कुमार [बीबीसी संवाददाता गुजरात से]|Opinion - Opinion|16 December 2017

"पतंजलि योगपीठ में मां गंगा के तट पर मैं उस बात को फिर से दोहरा रहा हूं. इसे मैंने अहमदाबाद में एक बार पहले भी कहा था. मैंने कहा था कि हमारे मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात को केवल चला नहीं रहे हैं बल्कि वो अनुष्ठान कर रहे हैं."

मोरारी बापू ने 2013 में इसी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा था, "साबरमती आश्रम में रामकथा थी. मैं मानस के साथ महात्मा गांधी को जोड़कर बोल रहा था. उसमें नरेंद्र भाई भी एक दिन आए थे. स्रोता के रूप में और बोले भी. तब मैंने व्यासपीठ से किसी प्रसंगवश कहा था कि मैं तो बाबा हूं, कुछ भी छोड़ सकता हूं. तब इस आदमी ने कुर्सी से बैठे-बैठे कहा कि मैं भी बाबा हूं. तो आज दोनों बाबा साथ बैठे हैं. जो बाबा बनने की तैयारी कर रहा है उसमें निर्णय, राष्ट्र को करना है."

बाद में नरेंद्र मोदी को बीजेपी ने अपना पीएम प्रत्याशी बना दिया था. मोरारी बापू साबरमती आश्रम में जिस मानस महात्मा कथा की बात कर रहे थे उसी का एक दिलचस्प वाक़या एक स्थानीय पत्रकार ने बताया.

उन्होंने कहा, "मोरारी बापू कथा कहते-कहते मोदी पर आ गए. उन्होंने कहा कि अपने मोदी को सत्ता से लगाव नहीं है. वो जिस आसन पर बैठे थे उस पर थोड़ा झुके और उन्होंने तकिये को फेंकते हुए कहा कि मोदी सत्ता को यूं फेंक सकते हैं."

वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश शाह कहते हैं, "यह नरेंद्र मोदी की साधने की कला ही है कि उनके संबंध मोरारी बापू, आसाराम बापू और गुजरात की सबसे ताक़तवर धार्मिक संस्था स्वामीनारायण से भी है. अगर आप अप्रत्यक्ष रूप से देखें तो ये तीनों संस्थाएं आपसी प्रतिद्वंद्वी हैं, लेकिन मोदी के तीनों से काफ़ी मधुर संबंध रहे हैं."

'कभी नहीं की मोदी का आलोचना'

प्रकाश शाह का कहना है कि मोरारी बापू की मोदी से दोस्ती चुनावी फ़ायदों के लिहाज से मायने रखती है. उनका कहना है कि मोरारी बापू की हर अपील काम करती है.

2002 के दंगों के बाद मोरारी बापू ने एक शांति मार्च निकाला था. प्रकाश शाह कहते हैं कि यह टोकनिज़्म के अलावा कुछ नहीं था. उर्विश भी इस बात को स्वीकार करते हैं मोरारी बापू ने मोदी की आलोचना कभी नहीं की.

गुजरात यूनिवर्सिटी में सोशल साइंस के प्रोफ़ेसर गौरांग जानी का कहना है कि बीजेपी और मोदी के संबंध मोरारी बापू से हमेशा अच्छे रहे हैं.

उनके मुताबिक, "मोरारी बापू ने हमेशा मोदी के लिए कवच का काम किया है. जब 2002 का दंगा हुआ तो किसी ने मोदी की आलोचना नहीं की और उसमें स्वामीनारायण से लेकर मोरारी बापू तक शामिल हैं."

वरिष्ठ पत्रकार उर्विश कहते हैं कि मोदी और मोरारी बापू के संबंध कभी ख़राब नहीं हुए. उर्विश महुवा में हुए एक जनआंदोलन का ज़िक्र करते हैं. तब बीजेपी विधायक कनुभाई कड़सारिया निरमा प्लांट लगाने के ख़िलाफ़ आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे. पास में ही उनकी व्यासपीठ है.

उर्विश बताते हैं, "मोरारी बापू लंबे समय तक चुप रहे. एक दिन उन्होंने निरमा प्लांट के मालिक दर्शन भाई पटेल और कनुभाई को बुलाया कि आपस में समझौता कर लें, लेकिन बात नहीं बनी."

उर्विश का कहना है कि जहां मोरारी बापू को लोगों के साथ खड़ा रहना चाहिए था वहां उन्होंने निरमा के मालिक को नाराज़ करने का जोखिम नहीं उठाया.

मोरारी बापू 80 के दशक में रामजन्मभूमि आंदोलन में विश्व हिन्दू परिषद के साथ शिलापूजन में भी शामिल रहे हैं. बाबरी विध्वंस पर चर्चित डॉक्यूमेंट्री 'राम के नाम' बनाने वाले फ़िल्मकार आनंद पटवर्धन दो साल पहले मोरारी बापू की व्यासपीठ में गए थे.

मोरारी बापू की अपील से चुनावों में होता है असर?

उन्होंने कहा, "मैंने वहां अपनी फ़िल्म भी दिखाई. अच्छा लगा कि उन्होंने मुझे अनुमति दी. जहां तक उनकी दोस्ती और संबंधों के सवाल हैं तो इससे उनके जीवन के विरोधाभासों का ही पता चलता है. पर मेरा मानना है कि कोई जन्म से ही सांप्रदायिक नहीं होता है. हमें ऐसे लोगों से संवाद कम करने के बजाय बढ़ाने की ज़रूरत है."

मोरारी बापू अक्सर कहते हैं कि वो सेतु का काम करते हैं. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मोरारी बापू ने अंबानी भाइयों में भी सुलह कराने की कोशिश की थी, लेकिन यहां कामयाबी नहीं मिली थी.

हालांकि कई लोग हैं जो मोरारी बापू को सेक्युलर और उदार रामकथावाचक मानते हैं. वरिष्ठ पत्रकार गौतम ठक्कर का कहना है कि मोरारी बापू एक सेक्युलर संत हैं और उनकी मोदी या बीजेपी से क़रीबी हिन्दुत्व की विचारधारा के प्रति झुकाव के कारण है.

उन्होंने कहा कि मोरारी बापू कथा के अंदर सद्भावना की बात करते हैं. रामायण की भी बात करते हैं. हालांकि ठक्कर इस बात को मानते हैं कि बापू की अपील से चुनाव में फ़ायदा होता है.

प्रकाश शाह कहते हैं, "मोरारी बापू तटस्थ रहने की कोशिश करते हैं, लेकिन चीज़ें साफ़ झलकती हैं. मोदी से उनकी दोस्ती लंबे समय से है. जब भी पब्लिक में आए तो हमेशा फ़ेवर में ही आए."

मोरारी बापू राम सेतु के समर्थन में भी सक्रिय रहे हैं. मोदी से उनकी दोस्ती को गुजरात में लोग काफ़ी स्मार्ट संबंध मानते हैं.

एक सीनियर पत्रकार ने कहा कि गुजराती में एक कहावत है कि 'जिसे गुड़ से मारा जा सकता है उसे ज़हर देकर नहीं मारना चाहिए.' उन्होंने कहा कि 'गुजरात में धर्म और राजनीति का गठजोड़ कुछ ऐसा ही है.'

14 दिसंबर 2017

सौजन्य : http://www.bbc.com/hindi/india-42350127

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