Opinion Magazine
Number of visits: 9504113
  •  Home
  • Opinion
    • Opinion
    • Literature
    • Short Stories
    • Photo Stories
    • Cartoon
    • Interview
    • User Feedback
  • English Bazaar Patrika
    • Features
    • OPED
    • Sketches
  • Diaspora
    • Culture
    • Language
    • Literature
    • History
    • Features
    • Reviews
  • Gandhiana
  • Poetry
  • Profile
  • Samantar
    • Samantar Gujarat
    • History
  • Ami Ek Jajabar
    • Mukaam London
  • Sankaliyu
    • Digital Opinion
    • Digital Nireekshak
    • Digital Milap
    • Digital Vishwamanav
    • એક દીવાદાંડી
    • काव्यानंद
  • About us
    • Launch
    • Opinion Online Team
    • Contact Us

लहरों का निमंत्रण

हरिवंशराय बच्चन|Poetry|29 December 2023

तीर पर कैसे रुकूँ मैं,
आज लहरों में निमंत्रण!

१

रात का अंतिम प्रहर है,
झिलमिलाते हैं सितारे,
वक्ष पर युग बाहु बाँधे
मैं खड़ा सागर किनारे,

वेग से बहता प्रभंजन
केश पट मेरे उड़ाता,
शून्य में भरता उदधि –
उर की रहस्यमयी पुकारें;

इन पुकारों की प्रतिध्वनि
हो रही मेरे ह्रदय में,
है प्रतिच्छायित जहाँ पर
सिंधु का हिल्लोल कंपन .

तीर पर कैसे रुकूँ मैं,
आज लहरों में निमंत्रण!

२

विश्व की संपूर्ण पीड़ा
सम्मिलित हो रो रही है,
शुष्क पृथ्वी आंसुओं से
पाँव अपने धो रही है,

इस धरा पर जो बसी दुनिया
यही अनुरूप उनके–
इस व्यथा से हो न विचलित
नींद सुख की सो रही है;

क्यों धरनि अबतक न गलकर
लीन जलनिधि में हो गई हो?
देखते क्यों नेत्र कवि के
भूमि पर जड़-तुल्य जीवन?

तीर पर कैसे रुकूँ मैं,
आज लहरों में निमंत्रण!

३

जर जगत में वास कर भी
जर नहीं ब्यबहार कवि का,
भावनाओं से विनिर्मित
और ही संसार कवि का,

बूँद से उच्छ्वास को भी
अनसुनी करता नहीं वह
किस तरह होती उपेक्षा –
पात्र पारावार कवि का,

विश्व- पीड़ा से, सुपरिचित
हो तरल बनने, पिघलने,
त्याग कर आया यहाँ कवि
स्वप्न-लोकों के प्रलोभन

तीर पर कैसे रुकूं मैं,
आज लहरों में निमंत्रण !

४

जिस तरह मरू के ह्रदय में
है कहीं लहरा रहा सर,
जिस तरह पावस- पवन में
है पपीहे का छुपा स्वर,

जिस तरह से अश्रु- आहों से
भरी कवि की निशा में
नींद की परियां बनातीं
कल्पना का लोक सुखकर,

सिंधु के इस तीव्र हाहा-
कर ने, विश्वास मेरा,
है छिपा रक्खा कहीं पर
एक रस-परिपूर्ण गायन.

तीर पर कैसे रुकूं मैं
आज लहरों में निमंत्रण!

५

नेत्र सहसा आज मेरे
तम पटल के पार जाकर
देखते हैं रत्न- सीपी से
बना प्रासाद सुंदर,

है ख जिसमें उषा ले
दीप कुंचित रश्मियों का;
ज्योति में जिसकी सुनहली
सिंधु कन्याएँ मनोहर

गूढ़ अर्थो से भरी मुद्रा
बनाकर गान करतीं
और करतीं अति अलौकिक
ताल पर उन्मत्त नर्तन .

तीर पर कैसे रुकूं मैं
आज लहरों में निमंत्रण!

६

मौन हो गन्धर्व बैठे
कर स्रवन इस गान का स्वर,
वाद्ध्य – यंत्रो पर चलाते
हैं नहीं अब हाथ किन्नर,

अप्सराओं के उठे जो
पग उठे ही रह गए हैं,
कर्ण उत्सुक, नेत्र अपलक
साथ देवों के पुरंदर

एक अदभुत और अविचल
चित्र- सा है जान पड़ता,
देव- बालाएँ विमानो से
रहीं कर पुष्प- वर्षण.

तीर पर कैसे रुकूं मैं,
आज लहरों में निमंत्रण!

७

दीर्घ उर में भी जलधि के
है नहीं खुशियाँ समाती,
बोल सकता कुछ न उठती
फूल बारंबार छाती;

हर्ष रत्नागार अपना
कुछ दिखा सकता जगत को
भावनाओं से भरी यदि
यह फफककर फूट जाती;

सिंधु जिस पर गर्व करता
और जिसकी अर्चना को
स्वर्ग झुकता, क्यों न उसके
प्रति करे कवि अर्घ्य अर्पण.

तीर पर कैसे रुकूं मैं,
आज लहरों में निमंत्रण!

८

आज अपने स्वप्न को मैं
सच बनाना चाहता हूँ,
दूर कि इस कल्पना के
पास जाना चाहता हूँ

चाहता हूँ तैर जाना
सामने अंबुधि पड़ा जो,
कुछ विभा उस पार की
इस पार लाना चाहता हूँ;

स्वर्ग के भी स्वप्न भू पर
देख उनसे दूर ही था,
किंतु पाऊँगा नहीं कर
आज अपने पर नियंत्रण

तीर पर कैसे रुकूं मैं,
आज लहरों में निमंत्रण!

९

लौट आया यदि वहाँ से
तो यहाँ नवयुग लगेगा,
नव प्रभाती गान सुनकर
भाग्य जगती का जागेगा,

शुष्क जड़ता शीघ्र बदलेगी
सरस चैतन्यता में,
यदि न पाया लौट, मुझको
लाभ जीवन का मिलेगा;

पर पहुँच ही यदि न पाया
ब्यर्थ क्या प्रस्थान होगा?
कर सकूंगा विश्व में फिर
भी नए पथ का प्रदर्शन.

तीर पर कैसे रुकू मैं,
आज लहरों में निमंत्रण!

१०

स्थल गया है भर पथों से
नाम कितनों के गिनाऊँ,
स्थान बाकी है कहाँ पथ
एक अपना भी बनाऊं?

विशव तो चलता रहा है
थाम राह बनी-बनाई,
किंतु इस पर किस तरह मैं
कवि चरण अपने बढ़ाऊँ?

राह जल पर भी बनी है
रुढि,पर, न हुई कभी वह,
एक तिनका भी बना सकता
यहाँ पर मार्ग नूतन!

तीर पर कैसे रुकूं मैं,
आज लहरों में निमंत्रण!

११

देखता हूँ आँख के आगे
नया यह क्या तमाशा —
कर निकलकर दीर्घ जल से
हिल रहा करता माना- सा

है हथेली मध्य चित्रित
नीर भग्नप्राय बेड़ा!
मै इसे पहचानता हूँ,
है नहीं क्या यह निराशा?

हो पड़ी उद्दाम इतनी
उर-उमंगें, अब न उनको
रोक सकता हाय निराशा का,
न आशा का प्रवंचन.

तीर पर कैसे रुकूं मैं,
आज लहरों में निमंत्रण!

१२

पोत अगणित इन तरंगों ने
डुबाए मानता मैं
पार भी पहुचे बहुत से —
बात यह भी जानता मैं,

किंतु होता सत्य यदि यह
भी, सभी जलयान डूबे,
पार जाने की प्रतिज्ञा
आज बरबस ठानता मैं,

डूबता मैं किंतु उतराता
सदा व्यक्तित्व मेरा,
हों युवक डूबे भले ही
है कभी डूबा न यौवन!

तीर पर कैसे रुकूं मैं,
आज लहरों में निमंत्रण!

१३

आ रहीं प्राची क्षितिज से
खींचने वाली सदाएं
मानवों के भाग्य निर्णायक
सितारो! दो दुआएं,

नाव, नाविक फेर ले जा,
है नहीं कुछ काम इसका,
आज लहरों से उलझने को
फड़कती हैं भुजाएं;

प्राप्त हो उस पार भी इस
पार-सा चाहे अँधेरा,
प्राप्त हो युग की उषा
चाहे लुटाती नव किरण-धन.

तीर पर कैसे रुकूं मैं,
आज लहरों में निमंत्रण!

Loading

29 December 2023 Vipool Kalyani
← From Babri Demolition to Ram Temple: Trajectory of Indian Politics
ઇલેક્ટ્રિક ટ્રેન : ગીતા નાયક →

Search by

Opinion

  • સહૃદયતાનું ઋણ
  • સાંસદને પેન્શન હોય તો શિક્ષકને કેમ નહીં?
  • કેવી રીતે ‘ઈજ્જત’ની એક તુચ્છ વાર્તા ‘ત્રિશૂલ’માં આવીને સશક્ત બની ગઈ
  • અક્ષયકુમારે વિકાસની કેરી કાપ્યાચૂસ્યા વિના નરેન્દ્ર મોદીના મોં પર મારી!
  • ભીડ, ભીડ નિયંત્રણ, ભીડ સંચાલન અને ભીડભંજન

Diaspora

  • ઉત્તમ શાળાઓ જ દેશને મહાન બનાવી શકે !
  • ૧લી મે કામદાર દિન નિમિત્તે બ્રિટનની મજૂર ચળવળનું એક અવિસ્મરણીય નામ – જયા દેસાઈ
  • પ્રવાસમાં શું અનુભવ્યું?
  • એક બાળકની સંવેદના કેવું પરિણામ લાવે છે તેનું આ ઉદાહરણ છે !
  • ઓમાહા શહેર અનોખું છે અને તેના લોકો પણ !

Gandhiana

  • રાજમોહન ગાંધી – એક પ્રભાવશાળી અને ગંભીર વ્યક્તિ
  • ભારતીય તત્ત્વજ્ઞાન અને ગાંધીજી 
  • માતા પૂતળીબાઈની સાક્ષીએ —
  • મનુબહેન ગાંધી – તરછોડાયેલ વ્યક્તિ
  • કચ્છડો બારે માસ અને તેમાં ગાંધીજી એકવારનું શતાબ્દી સ્મરણ

Poetry

  • ખરાબ સ્ત્રી
  • ગઝલ
  • દીપદાન
  • અરણ્ય રૂદન
  • પિયા ઓ પિયા

Samantar Gujarat

  • ખાખરેચી સત્યાગ્રહ : 1-8
  • મુસ્લિમો કે આદિવાસીઓના અલગ ચોકા બંધ કરો : સૌને માટે એક જ UCC જરૂરી
  • ભદ્રકાળી માતા કી જય!
  • ગુજરાતી અને ગુજરાતીઓ … 
  • છીછરાપણાનો આપણને રાજરોગ વળગ્યો છે … 

English Bazaar Patrika

  • “Why is this happening to me now?” 
  • Letters by Manubhai Pancholi (‘Darshak’)
  • Vimala Thakar : My memories of her grace and glory
  • Economic Condition of Religious Minorities: Quota or Affirmative Action
  • To whom does this land belong?

Profile

  • સરસ્વતીના શ્વેતપદ્મની એક પાંખડી: રામભાઈ બક્ષી 
  • વંચિતોની વાચા : પત્રકાર ઇન્દુકુમાર જાની
  • અમારાં કાલિન્દીતાઈ
  • સ્વતંત્ર ભારતના સેનાની કોકિલાબહેન વ્યાસ
  • જયંત વિષ્ણુ નારળીકરઃ­ એક શ્રદ્ધાંજલિ

Archives

“Imitation is the sincerest form of flattery that mediocrity can pay to greatness.” – Oscar Wilde

Opinion Team would be indeed flattered and happy to know that you intend to use our content including images, audio and video assets.

Please feel free to use them, but kindly give credit to the Opinion Site or the original author as mentioned on the site.

  • Disclaimer
  • Contact Us
Copyright © Opinion Magazine. All Rights Reserved