Opinion Magazine
Number of visits: 9448739
  •  Home
  • Opinion
    • Opinion
    • Literature
    • Short Stories
    • Photo Stories
    • Cartoon
    • Interview
    • User Feedback
  • English Bazaar Patrika
    • Features
    • OPED
    • Sketches
  • Diaspora
    • Culture
    • Language
    • Literature
    • History
    • Features
    • Reviews
  • Gandhiana
  • Poetry
  • Profile
  • Samantar
    • Samantar Gujarat
    • History
  • Ami Ek Jajabar
    • Mukaam London
  • Sankaliyu
    • Digital Opinion
    • Digital Nireekshak
    • Digital Milap
    • Digital Vishwamanav
    • એક દીવાદાંડી
    • काव्यानंद
  • About us
    • Launch
    • Opinion Online Team
    • Contact Us

जाति का प्रश्न: हिन्दू दक्षिणपंथियों का बदलता नैरेटिव

राम पुनियानी|Opinion - Opinion|6 September 2024

राम पुनियानी

पिछले आम चुनाव (अप्रैल-मई 2024) में जाति जनगणना एक महत्वपूर्ण मुद्दा थी. इंडिया गठबंधन ने जाति जनगणना की आवश्यकता पर जोर दिया जबकि भाजपा ने इसकी खिलाफत की. जाति जनगणना के संबंध में विपक्षी पार्टियों की सोच एकदम साफ़ और स्पष्ट है.

जाति के मुद्दे ने हिन्दू दक्षिणपंथी राजनीति को मजबूती देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है. उच्च जातियां, निम्न जातियों का शोषण करती आईं हैं यह अहसास जोतीराव फुले और भीमराव आंबेडकर जैसे लोगों को था. इस मुद्दे से जनता का ध्यान हटाने के लिए उच्च जातियों के संगठनों ने भारत के अतीत का महिमामंडन करना शुरू कर दिया. हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा और मनुस्मृति के मूल्य इन ताकतों के एजेंडा के मूल में थे. पिछले कुछ दशकों से आरएसएस ने इस नैरेटिव को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है कि सभी जातियां बराबर हैं. संघ से जुड़े लेखकों ने विभिन्न जातियों पर कई किताबें लिखीं जिनमें यह कहा गया कि अतीत में सभी जातियों का दर्जा बराबर था.

आरएसएस नेताओं का यह दावा है कि अछूत जातियां विदेशी आक्रान्ताओं के अत्याचारों के कारण अस्तित्व में आईं और उसके पहले तक हिन्दू धर्म में उनका कोई स्थान नहीं था. संघ के कम से कम तीन नेताओं ने दलित, आदिवासी और कई अन्य समूहों के जन्म के लिए मध्यकाल में ‘मुस्लिम आक्रमण’ को ज़िम्मेदार बताया है. संघ के एक शीर्ष नेता भैयाजी जोशी के अनुसार, हिन्दू धर्मग्रंथों में कहीं भी शूद्रों को अछूत नहीं बताया गया है. मध्यकाल में ‘इस्लामिक अत्याचारों’ के कारण अछूत दलितों की एक नयी श्रेणी उभरी. जोशी के लिखा है: “हिन्दुओं के स्वाभिमान को तोड़ने के लिए अरबी विदेशी हमलावरों, मुस्लिम राजाओं और गौमांस भक्षण करने वालों ने चंद्रवंशी क्षत्रियों को गायों को काटने, उनकी खाल उतारने और उनके कंकाल को किसी सूनी जगह फेंकने जैसे घिनौने काम करने पर मजबूर किया. इस तरह विदेशी हमलावरों ने ‘चर्म-कर्म’ करने के लिए एक नयी जाति बनाई और यह काम स्वाभिमानी हिन्दू कैदियों को सज़ा के स्वरुप दिया जाता था.”

इस सारे दुष्प्रचार का उद्देश्य है जाति को ऐसी सकारात्मक संस्था बताना, जो हिन्दू राष्ट्र की रक्षा करती आई है. जाति जनगणना की मांग के जोर पकड़ने की पृष्ठभूमि में आरएसएस के मुखपत्र पाञ्चजन्य ने 5 अगस्त (2024) के अपने अंक में हितेश सरकार का एक लेख प्रकाशित किया जिसका शीर्षक है “ऐ नेताजी: कौन जात हो”. लेख में यह दावा किया गया है कि विदेशी आक्रान्ता जाति की दीवारों को तोड़ नहीं सके और इसी कारण वे हिन्दुओं का धर्मपरिवर्तन नहीं करवा सके. जाति, हिन्दू समाज का एक मुख्य आधार है और उसी के कारण विदेशी हमलों के बाद भी देश सुरक्षित और मज़बूत बना रहा. इस लेख में बम्बई के पूर्व बिशप लुई जॉर्ज मिल्ने की पुस्तक “मिशन टू हिन्दूस: ए कॉन्ट्रिब्यूशन टू द स्टडी ऑफ़ मिशनरी मेथडस” से एक उद्धरण दिया गया है. उद्धरण यह है: “…तो फिर वह (जाति), सामाजिक ढांचे का आवश्यक हिस्सा है. मगर फिर भी, व्यावहारिक दृष्टिकोण से वह लाखों लोगों के लिए धर्म है…वह किसी व्यक्ति की प्रकृति और धर्म के बीच कड़ी का काम करती है.”

लेखक के अनुसार, मिशनरीज़ को जो चीज़ उस समय खल रही थी वही आज भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को खल रही है क्योंकि कांग्रेस, ईस्ट इंडिया कंपनी और लार्ड ए.ओ. ह्यूम की उत्तराधिकारी है. इसमें यह भी कहा गया है कि चूँकि आक्रान्ता, जाति के किले को नहीं तोड़ सके इसलिए उन्होंने (मुसलमानों) ने इज्ज़तदार जातियों को हाथ से मैला साफ़ करने के काम में लगाया और यह भी कि उस काल से पहले हाथ से मैला साफ़ करने की प्रथा का कहीं वर्णन नहीं मिलता. लेख में कहा गया है कि मिशनरी समाज के पिछड़ेपन के लिए जाति प्रथा को दोषी मानती हैं और कांग्रेस को भी जाति एक काँटा नज़र आती है.

यह लेख झूठ का पुलिंदा है. पहली बात तो यह कि दूसरी शताब्दी ईस्वी में लिखी गयी ‘मनुस्मृति’ में जाति प्रथा की व्याख्या और उसकी जबरदस्त वकालत की गयी है. यह पुस्तक देश में विदेशी आक्रांताओं के आने के सैकड़ों साल पहले लिखी गयी थी. कई अन्य पवित्र हिन्दू ग्रंथों में भी कहा गया है कि निम्न जातियों के लोगों को उच्च जातियों से दूर रहना चाहिए. यही सोच अछूत प्रथा और हाथ से मैला साफ़ करने की प्रथा – दोनों की जननी है. पवित्रता और प्रदूषण से सम्बंधित सारे नियम और आचरण ओर पुनर्जन्म का सिद्धांत भी इसी सोच पर आधारित है. नारद संहिता और वाजसनेयी संहिता भी यही कहती हैं. नारद संहिता में अछूतों के लिए जो कर्तव्य निर्धारित किये गए हैं, मानव मल साफ़ करना उनमें से एक है. वाजसनेयी संहिता कहती है कि चांडाल गुलाम हैं जो मनुष्यों का मैला साफ़ करते हैं.  

डॉ आंबेडकर का मानना था कि जाति प्रथा को ब्राह्मणवाद ने समाज पर लादा है. आरएसएस के मुखपत्र में प्रकाशित लेख जहाँ जाति प्रथा की तारीफों के पुल बांधता है वहीं क्रन्तिकारी दलित चिन्तक और कार्यकर्ता उसे हिन्दू समाज की सबसे बड़ी बुराईयों में से एक मानते हैं. इसी कारण डॉ आंबेडकर ने जाति के विनाश की बात कही थी.

हिन्दू राष्ट्रवादी, आनुपातिक प्रतिनिधित्व और जाति जनगणना के पूरी तरह खिलाफ हैं. आनुपातिक प्रतिनिधित्व की शुरुआत गाँधीजी और डॉ आंबेडकर के बीच हस्ताक्षरित पूना पैक्ट से हुई थी और बाद में इसे संविधान का हिस्सा बनाया गया. इसके विरोध में अहमदाबाद में 1980 और फिर 1985 में दंगे हुए. सन 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करने के बाद, राममंदिर आन्दोलन अचानक अत्यंत आक्रामक हो गया.  

जहाँ तक कांग्रेस के ईस्ट इंडिया कंपनी और ह्यूम की विरासत की उत्तराधिकारी होने के आरोप का सवाल है, यह सफ़ेद झूठ है. इस तरह के झूठ केवल वे ही लोग फैला सकते हैं जो स्वाधीनता आन्दोलन से दूर रहे और आज भी भारत को एक बहुवादी और विविधताओं का सम्मान करने वाले देश के रूप में नहीं देखता चाहते. तिलक से लेकर गाँधी तक के नेतृत्व में कांग्रेस ब्रिटिश शासन के खिलाफ थी. ह्यूम इसी कांग्रेस का हिस्सा थे. ऐसा आरोप लगाया जाता है कि ह्यूम ने कांग्रेस की परिकल्पना एक सेफ्टी वाल्व के रूप में की थी. मगर गहराई से अध्ययन करने पर कांग्रेस के गठन की प्रक्रिया और उद्देश्य साफ़ हो जाते हैं. देश में उभरते हुए राष्ट्रवादी संगठनों जैसे मद्रास महाजन सभा (संस्थापक पनापक्कम आनंदचेरलू), बॉम्बे एसोसिएशन (संस्थापक जगन्नाथ शंकर शेठ) और पूना सार्वजनिक सभा (संस्थापक एम.जी. रानाडे) को स्वतंत्रता की अपनी मांग को उठाने के लिए एक राजनैतिक मंच की ज़रुरत थी. उन्होंने कांग्रेस के आव्हान को स्वीकार किया और उसे एक ऐसा राष्ट्रीय मंच बनाया जो नए उभरते भारत की आकाँक्षाओं को उठा सके. इसकी शुरूआती मांगो में शामिल था आईसीएस की परीक्षा के लिए भारत में केंद्र बनाना. कांग्रेस ने ज़मींदारों पर नियंत्रण लगाने की मांग भी उठाई ताकि उनकी अधीनता में काम कर रहे श्रमिक आजाद हो सकें और यह भी कहा कि देश के औद्योगीकरण के लिए अधिक सुविधाएँ मुहैय्या करवाई जानी चाहिए.

आगे चलकर इसी कांग्रेस ने ‘पूर्ण स्वराज्य’ और ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ के नारे भी बुलंद किये. जिस कांग्रेस पर पाञ्चजन्य निशाना साध रहा है, उसी ने राष्ट्रीय आन्दोलन का नेतृत्व किया और साथ ही सामाजिक न्याय, जिसके आंबेडकर पुरजोर समर्थक थे, के मुद्दे को भी उठाया.

आंबेडकर, जो भारतीय संविधान के मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते थे और आरएसएस, जो हिन्दू राष्ट्रवाद की वकालत करती थी, के बीच के अंतर को भुलाया नहीं जा सकता. आंबेडकर ने मनुस्मृति का दहन किया था जबकि आरएसएस इस पवित्र पुस्तक में प्रतिपादित जातिगत असमानता के मूल्यों का समर्थक है. आंबेडकर ने भारत के संविधान का मसविदा तैयार किया था और आरएसएस ने इसी संविधान का खुलकर विरोध किया था. और आज भी परोक्ष रूप से कर रहा है.

06 सितम्बर 2024
(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया. लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)  

Loading

6 September 2024 Vipool Kalyani
← સુરેશ જોષી – સ્મરણો 
સુરેશ જોષીના સાહિત્યકલાવિષયક કેટલાક પાયાના વિચારો →

Search by

Opinion

  • રૂપ, કુરૂપ
  • કમલા હેરિસ રાજનીતિ છોડે છે, જાહેરજીવન નહીં
  • શંકા
  • ગાઝા સંહાર : વિશ્વને તાકી રહેલી નૈતિક કટોકટી
  • સ્વામી : પિતૃસત્તાક સમાજમાં ભણેલી સ્ત્રીના પ્રેમ અને લગ્નના દ્વંદ્વની કહાની

Diaspora

  • ૧લી મે કામદાર દિન નિમિત્તે બ્રિટનની મજૂર ચળવળનું એક અવિસ્મરણીય નામ – જયા દેસાઈ
  • પ્રવાસમાં શું અનુભવ્યું?
  • એક બાળકની સંવેદના કેવું પરિણામ લાવે છે તેનું આ ઉદાહરણ છે !
  • ઓમાહા શહેર અનોખું છે અને તેના લોકો પણ !
  • ‘તીર પર કૈસે રુકૂં મૈં, આજ લહરોં મેં નિમંત્રણ !’

Gandhiana

  • સ્વરાજ પછી ગાંધીજીએ ઉપવાસ કેમ કરવા પડ્યા?
  • કચ્છમાં ગાંધીનું પુનરાગમન !
  • સ્વતંત્ર ભારતના સેનાની કોકિલાબહેન વ્યાસ
  • અગ્નિકુંડ અને તેમાં ઊગેલું ગુલાબ
  • ડૉ. સંઘમિત્રા ગાડેકર ઉર્ફે ઉમાદીદી – જ્વલંત કર્મશીલ અને હેતાળ મા

Poetry

  • બણગાં ફૂંકો ..
  • ગણપતિ બોલે છે …
  • એણે લખ્યું અને મેં બોલ્યું
  • આઝાદીનું ગીત 
  • પુસ્તકની મનોવ્યથા—

Samantar Gujarat

  • ખાખરેચી સત્યાગ્રહ : 1-8
  • મુસ્લિમો કે આદિવાસીઓના અલગ ચોકા બંધ કરો : સૌને માટે એક જ UCC જરૂરી
  • ભદ્રકાળી માતા કી જય!
  • ગુજરાતી અને ગુજરાતીઓ … 
  • છીછરાપણાનો આપણને રાજરોગ વળગ્યો છે … 

English Bazaar Patrika

  • Letters by Manubhai Pancholi (‘Darshak’)
  • Vimala Thakar : My memories of her grace and glory
  • Economic Condition of Religious Minorities: Quota or Affirmative Action
  • To whom does this land belong?
  • Attempts to Undermine Gandhi’s Contribution to Freedom Movement: Musings on Gandhi’s Martyrdom Day

Profile

  • સ્વતંત્ર ભારતના સેનાની કોકિલાબહેન વ્યાસ
  • જયંત વિષ્ણુ નારળીકરઃ­ એક શ્રદ્ધાંજલિ
  • સાહિત્ય અને સંગીતનો ‘સ’ ઘૂંટાવનાર ગુરુ: પિનુભાઈ 
  • સમાજસેવા માટે સમર્પિત : કૃષ્ણવદન જોષી
  • નારાયણ દેસાઈ : ગાંધીવિચારના કર્મશીલ-કેળવણીકાર-કલમવીર-કથાકાર

Archives

“Imitation is the sincerest form of flattery that mediocrity can pay to greatness.” – Oscar Wilde

Opinion Team would be indeed flattered and happy to know that you intend to use our content including images, audio and video assets.

Please feel free to use them, but kindly give credit to the Opinion Site or the original author as mentioned on the site.

  • Disclaimer
  • Contact Us
Copyright © Opinion Magazine. All Rights Reserved