Opinion Magazine
Number of visits: 9446818
  •  Home
  • Opinion
    • Opinion
    • Literature
    • Short Stories
    • Photo Stories
    • Cartoon
    • Interview
    • User Feedback
  • English Bazaar Patrika
    • Features
    • OPED
    • Sketches
  • Diaspora
    • Culture
    • Language
    • Literature
    • History
    • Features
    • Reviews
  • Gandhiana
  • Poetry
  • Profile
  • Samantar
    • Samantar Gujarat
    • History
  • Ami Ek Jajabar
    • Mukaam London
  • Sankaliyu
    • Digital Opinion
    • Digital Nireekshak
    • Digital Milap
    • Digital Vishwamanav
    • એક દીવાદાંડી
    • काव्यानंद
  • About us
    • Launch
    • Opinion Online Team
    • Contact Us

हम एक हैं !

कुमार प्रशांत|Opinion - Opinion|20 July 2022

पता नहीं कब से, कलेजे का पूरा जोर लगा कर हम चिल्लाते रहे : आवाज दो, हम एक हैं; लेकिन हम एक नहीं हुए ! वे कोई आवाज नहीं लगाते, जुलूस नहीं निकालते लेकिन समय पड़ने पर इस तरह एक होते हैं कि समय भी हक्का-बक्का रह जाता है.

श्रीलंका के अपराधी, अपदस्थ, अपमानित व भगोड़े राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे तब अपना देश छोड़ भागे जब सारा देश जल रहा था और उनकी बनाई सारी व्यवस्था ध्वस्त पड़ी थी. यह वैसा दौर था जिसमें कोई देशभक्त देश छोड़ कर भाग नहीं सकता है. उसका भागना ही प्रमाणित करता है कि वह और कुछ भी हो, देशभक्त तो नहीं है. देशभक्त होगा तो अपने मन-प्राणों का पूरा बल जोड़ कर हालात को संभालने की कोशिश करेगा और इस कोशिश में होम होना ही बदा हो तो वही स्वीकार करेगा. लेकिन गोटबाया की देशभक्ति ने उसे भागने का रास्ता दिखाया. भागने से पहले वह गायब हो गया था क्योंकि श्रीलंका की सड़कों पर, सरकारी इमारतों पर, राष्ट्रपति भवन पर नागरिकों का कब्जा हो गया था. नागरिक यानी लोक जिनसे श्रीलंका का ही नहीं, सारी दुनिया का लोकतंत्र बनता है. लोकतंत्र की शोकांतिका यह है कि वह बनता लोक से है, चलता तंत्र से है. चलाने वाले वेतनभोगी बड़े-छोटे हर कर्मचारी को अक्सर यह भ्रम हो जाता है कि वे हैं तो राष्ट्र है. इसलिए जब कभी लोक अपनी हैसियत बताने सामने आता है, तंत्र के होश उड़ जाते हैं वह फौज-पुलिस, लाठी-गोली, अश्रुगैस-पानी की तलवारें ले कर मुकाबले को उतर आता है. यही गोटाबाया ने भी किया, और जब कोई बस नहीं चला तो भय से कहीं जा छुपा. कहां ?

यही कहानी मुझे आज आपको सुनानी है. जब श्रीलंका के सागर में उत्ताल लोक लहरें उठ रही थीं और सेना ऐसा दिखा रही थी कि वह लोक से सहानुभूति रखती है, ठीक उसी वक्त, वही सेना लोकद्रोही गोटाबाया को पनाह भी दे रही थी. इतना ही नहीं, वह बयान दे रही थी कि हमने गोटाबाया को न तो छुपा रखा है, न छुपने में मदद ही की है. गोटाबाया में थोड़ा भी नैतिक बल होता तो वह तभी-के-तभी इस्तीफा दे देता. सभी गोटाबाया ने ऐसा ही तो किया था.

यह भयानक हकीकत हममें से कम लोग ही जानते होंगे कि श्रीलंका की राष्ट्रीय सरकार में ‘गोटाबायों’ की उपस्थिति कैसी व कितनी थी. प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने अपने भाई गोटाबाया राजपक्षे को राष्ट्रपति बनाया था, अपने दूसरे भाई बासिल राजपक्षे को वित्त मंत्री, अपने भतीजे नामाल को खेल व युवा मंत्री, दूसरे भाई चामाल को सिंचाई मंत्री, और चामाल के बेटे शाशींद्र को कृषि मंत्री बनाया था. महिंदा ने अपने बेटे योशिथा को प्रधानमंत्री कार्यालय का प्रमुख नियुक्त किया था तो दामाद निशांता विक्रमसिंघे को लंकन एयरलाइंस का प्रमुख बनाया था. ऐसा राष्ट्रीय परिवारवाद क्रूरता व आतंक के सहारे ही टिकाया जा सकता है, यह जानते हुए महिंदा और गोटाबाया ने तमिल लंकाइयों से युद्ध छेड़ दिया और दुश्मनों की तरह उनका खात्मा करवाया. इसके लिए जरूरी था कि लंकाई समाज में चरम घृणा फैलाई जाए ताकि सभी एक-दूसरे के खून के प्यासे हो जाएं. इसलिए तमिल बनाम सिंघली का खूनी दौर चला, बौद्ध पंडे-पुजारी राजा के समर्थन में धर्म-ध्वजा ले कर उतर पड़े. सत्ता प्रायोजित इस सामाजिक तांडव में कमजोर व भ्रष्ट विपक्ष बिखर कर रह गया.

जब जन असंतोष उभरने लगा तो उस पर पानी डालने के लिए राष्ट्रपति गोटाबाया ने अपने भाई प्रधानमंत्री महिंदा का इस्तीफा ले लिया और सरकार की पूरी कमान खुद  संभाल ली. जनता को संदेश गया: देखो, कैसा राजा है, अपने भाई को भी नहीं छोड़ता है ! हमारे यहां इन दिनों इसे ‘जीरो टॉलरेंस’ कहा जाता है. इस्तीफा देने के बाद प्रधानमंत्री महिंदा कहीं गुम हो गए और ऐसे हुए कि आज तक किसी को पता नहीं है कि वे कहां हैं. इसे हम चाहें तो ‘अज्ञातवास’ की साधना कह सकते हैं. महिंदा के बाद गोटाबाया ‘अज्ञातवासी’ हुए. जनता से द्रोह करने वाले गोटाबाया को फ़ौज ने छुपा कर रखा और फिर मौका पाते ही फौजी विमान से, 5 परिवारजनों के साथ 3 सरकारी अधिकारियों की देख-रेख में मालदीव भेज दिया.

मालदीव का सत्तापक्ष समझता था कि लंका के सत्तापक्ष का प्रतिनिधि अपना आदमी है. इसलिए उसने श्रीलंका की जनता के द्रोही गोटाबाया को पनाह दी. वहां सरकारी सुरक्षा में बैठ कर गोटाबाया ने अपनी गोटियां बिठायीं और फिर उड़ कर पहुंचा सिंगापुर. सिंगापुर के सत्तापक्ष ने भी स्वधर्म निभाया और एक राजनीतिक भगोड़े के लिए अपना द्वार खोल दिया. कैसा मासूम बयान दिया वहां के सत्तापक्ष ने : न हमने शरण दी है, न उन्होंने शरण मांगी है ! अपने देश से चोरी से भाग निकला कोई साधारण अपराधी  इस तरह घोषणा कर के सिंगापुर आए तो क्या उसे सिंगापुर में प्रवेश व पनाह मिल जाएगी ? सरकार जवाब नहीं देती है, धमकी देती है : किसी को, किसी प्रकार का विरोध जताने की सिंगापुर में अनुमति नहीं है ! खबर गर्म है कि गोटाबाया सिंगापुर में जमा व निवेश की गई अपनी अरबों की दौलत को ठिकाने लगाने की व्यवस्था करने में जुटे हैं. सिंगापुर सत्तापक्ष को पता है कि उनकी अर्थ-व्यवस्था ऐसे ही गोटाबायों के दम पर जिंदा है, सो उसे उनका साथ देना ही है.

यह है सत्ता प्रतिष्ठान का हम एक हैं! इसमें सत्तापक्ष व विपक्ष जैसा भेद नहीं है, देश-विदेश का फर्क नहीं है. आप देखिए, गोटाबाया की हत्या, लूट, दमन, धोखा और फिर देश की आंखों में धूल झोंक कर भाग निकलने की किसी महाशक्ति ने निंदा की ? किसी ने मालदीव या सिंगापुर से पूछा कि एक अपराधी को उसने कैसे पनाह दी ? नहीं, सभी चुप हैं क्योंकि सभी जानते हैं कि कल अपनी जनता से बचने का ऐसा रास्ता उन्हें भी पकड़ना पड़ सकता है. इसलिए ये सभी मिल कर ऐसा सत्ता प्रतिष्ठान बनाते हैं जिसमें समय-समय पर कारपोरेट, न्यायपालिका, कार्यपालिका, पुलिस-फौज, बैंकिग आदि अपनी-अपनी भूमिका निभाते हैं.

गांधी ने बहुत पहले, बहुत गहराई से इसे पहचाना था. न्यायालय के बारे में उन्होंने कहा था कि निर्णायक घड़ी में यह अंतत: सत्ता प्रतिष्ठान के साथ जाएगा और इसलिए लोक को अपने अधिकार के संघर्ष में न्यायालय पर आधार नहीं रखना चाहिए. दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान अकेले गांधी ही थे कि जिन्होंने फासिज्म के खिलाफ लोकतंत्र का नाम ले कर युद्ध करने वाले मित्र राष्ट्रों से पूछा था कि भारत जैसे महादेश को गुलाम रखकर आप लोकतांत्रिक लड़ाई का नाम भी कैसे ले सकते हैं ? तब जवाब किसी तरफ से नहीं आया था और गांधी ने ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन का ऐसा बिगुल फूंका कि साम्राज्यवाद को भारत छोड़ कर निकलना पड़ा था. तब गांधी ने भी ‘हम एक हैं’ का हाथ बढ़ाया था और  धर्म-जाति-भाषा-वर्ग आदि का भेद पार कर लोगों ने उनका हाथ थामा था. सामने आज़ादी खड़ी थी.

ऐसी एकता साधे बिना श्रीलंका को भी और हमें भी थामने वाला कोई नहीं होगा.

(19.07.2022)
मेरे ताजा लेखों के लिए मेरा ब्लॉग पढ़ें
https://kumarprashantg.blogspot.com

Loading

20 July 2022 Vipool Kalyani
← શિક્ષણ સમિતિ શિક્ષણ માટે પણ હોય તે જરૂરી છે … 
ક્યાં સુધી આ ધરતી બોજો સહન કરતી રહેશે ? →

Search by

Opinion

  • લોકો પોલીસ પર ગુસ્સો કેમ કાઢે છે?
  • એક આરોપી, એક બંધ રૂમ, 12 જ્યુરી અને ‘એક રૂકા હુઆ ફેંસલા’ 
  • શાસકોની હિંસા જુઓ, માત્ર લોકોની નહીં
  • તબીબની ગેરહાજરીમાં વાપરવા માટેનું ૧૮૪૧માં છપાયેલું પુસ્તક : ‘શરીર શાંનતી’
  • બાળકને સર્જનાત્મક બનાવે અને ખુશખુશાલ રાખે તે સાચો શિક્ષક 

Diaspora

  • ૧લી મે કામદાર દિન નિમિત્તે બ્રિટનની મજૂર ચળવળનું એક અવિસ્મરણીય નામ – જયા દેસાઈ
  • પ્રવાસમાં શું અનુભવ્યું?
  • એક બાળકની સંવેદના કેવું પરિણામ લાવે છે તેનું આ ઉદાહરણ છે !
  • ઓમાહા શહેર અનોખું છે અને તેના લોકો પણ !
  • ‘તીર પર કૈસે રુકૂં મૈં, આજ લહરોં મેં નિમંત્રણ !’

Gandhiana

  • સ્વરાજ પછી ગાંધીજીએ ઉપવાસ કેમ કરવા પડ્યા?
  • કચ્છમાં ગાંધીનું પુનરાગમન !
  • સ્વતંત્ર ભારતના સેનાની કોકિલાબહેન વ્યાસ
  • અગ્નિકુંડ અને તેમાં ઊગેલું ગુલાબ
  • ડૉ. સંઘમિત્રા ગાડેકર ઉર્ફે ઉમાદીદી – જ્વલંત કર્મશીલ અને હેતાળ મા

Poetry

  • બણગાં ફૂંકો ..
  • ગણપતિ બોલે છે …
  • એણે લખ્યું અને મેં બોલ્યું
  • આઝાદીનું ગીત 
  • પુસ્તકની મનોવ્યથા—

Samantar Gujarat

  • ખાખરેચી સત્યાગ્રહ : 1-8
  • મુસ્લિમો કે આદિવાસીઓના અલગ ચોકા બંધ કરો : સૌને માટે એક જ UCC જરૂરી
  • ભદ્રકાળી માતા કી જય!
  • ગુજરાતી અને ગુજરાતીઓ … 
  • છીછરાપણાનો આપણને રાજરોગ વળગ્યો છે … 

English Bazaar Patrika

  • Letters by Manubhai Pancholi (‘Darshak’)
  • Vimala Thakar : My memories of her grace and glory
  • Economic Condition of Religious Minorities: Quota or Affirmative Action
  • To whom does this land belong?
  • Attempts to Undermine Gandhi’s Contribution to Freedom Movement: Musings on Gandhi’s Martyrdom Day

Profile

  • સ્વતંત્ર ભારતના સેનાની કોકિલાબહેન વ્યાસ
  • જયંત વિષ્ણુ નારળીકરઃ­ એક શ્રદ્ધાંજલિ
  • સાહિત્ય અને સંગીતનો ‘સ’ ઘૂંટાવનાર ગુરુ: પિનુભાઈ 
  • સમાજસેવા માટે સમર્પિત : કૃષ્ણવદન જોષી
  • નારાયણ દેસાઈ : ગાંધીવિચારના કર્મશીલ-કેળવણીકાર-કલમવીર-કથાકાર

Archives

“Imitation is the sincerest form of flattery that mediocrity can pay to greatness.” – Oscar Wilde

Opinion Team would be indeed flattered and happy to know that you intend to use our content including images, audio and video assets.

Please feel free to use them, but kindly give credit to the Opinion Site or the original author as mentioned on the site.

  • Disclaimer
  • Contact Us
Copyright © Opinion Magazine. All Rights Reserved